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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला करने वाला प्राभिनियोधिक साकारोपयोग है। यह पतिज्ञान भी कहलाता है।
(२) अ तज्ञान साकारोपयोग-- वाव्यवाचकभाव सम्बन्ध पूर्वक शब्द के साथ सम्बन्ध रखने वाले अर्थ का ग्रहण करने वाला श्रु तज्ञान कहलाता है। जैसे-- कम्युग्रीवादि आकार वाली, जल धारणादि क्रिया में समर्थ वस्तु घट शब्दवाच्य है अर्थात् घट शब्द से कही जाती है । श्र तज्ञान भी इन्द्रियमनोनिमित्तक होता है और इन्द्रिय तथा मन की सहायता से ही पदार्थ को विषय करता है।
(३) अवधिज्ञान साकारोपयोग--मर्यादापूर्वक रूपी द्रव्यों को विषय करने वाला अवधिज्ञान साकारोपयोग कहलाता है। यह ज्ञान इन्द्रिय और मन की सहायता के विना ही रूपी पदार्थों को विषय करता है।
(१) मनःपर्यवज्ञान साकारोपयोग-ढाई द्वीप और समुद्रों में रहे हुए संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मनोगत भावों को जानने वाला मनापर्यवज्ञान साकारोपयोग कहलाता है। इसे मनःपर्यय और मनःपर्याय भी कहते हैं।
(५) केवलज्ञान साकारोपयोग--मति आदि ज्ञानों की अपेक्षा (सहायता) के बिना भूत, भविष्यत् और वर्तमान तथा तीनों लोकवर्ती समस्त पदार्थों को विषय करने वाला केवलज्ञान साकारोपयोग है। इसका विषय अनन्त है।
मरिज्ञान, श्रुतज्ञान और उपविज्ञान जब मिथ्यात्व मोहनीय से संयुक्त हो जाते हैं तव वेमलिन हो जाते हैं। उस दशा में वे अनुकम से (६) मत्यहान साकारोपयोग (७) ताज्ञान साकारोपयोग और (८) विमङ्गज्ञान साकारोपयोग कहलाते हैं।
अनाकारोपयोग के चार भेद(६) चक्षुदर्शन अनाकारोपयोग-आँख द्वारा पदार्थों का जो