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भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग (११) दर्शनार्य--दर्शन की अपेक्षा जो भार्य हों उन्हें दर्शनार्य कहते हैं। इनके दो भेद है-'सराग दर्शनार्य और वीतराग दर्शनार्य । बायोपशमिक सम्यग्दृष्टि और औपशामिक सम्यगदृष्टि के भेद से सरोग दर्शनार्य के दो भेद हैं।
(१२) चारित्रार्य-चारित्र की अपेक्षा जो आर्य हों वे चारित्रार्य कहलाते हैं। चारित्र के सामायिक, छेदोपस्थापनीय धादि पाँच भेद होने से चारित्रार्य के भी पाँच मेद हैं।
(बहलल्प निकि उद्देशक १ गाथा ३२६३) ७८६- उपयोगबारह
जिसके द्वारा सामान्य या विशेष रूप से वस्तु का ज्ञान किया जाय उसे उपयोग कहते हैं। उपयोग के दो भेद हैं-साकारोपयोग
और निराकारोपयोग (अनाकारोपयोग)। जिसके द्वारा पदार्थों के विशेष धर्मों का अर्थात् जाति, गुण, क्रिया आदि का ज्ञान हो वह साकारोपयोग है। अर्थात् सचेतन और अचेतन पदार्थों को पर्याय सहित जाननासाकारोपयोगहै, इसे ज्ञानोपयोग भी कहते हैं । जिस के द्वारा पदार्थों के सामान्य धर्म सचा आदि का ज्ञान किया जाय उसे निराकारोपयोग कहते हैं, यह दर्शनोपयोग भी कहा जाता है।
छद्मस्थों की अपेक्षा साकारोपयोग का समय अन्तर्महर्त है और केवली की अपेक्षा एक समय है। अनाकारोपयोग का समय छद्मस्थों की अपेक्षा अन्तर्मुह है किन्तु साकारोपयोग का समय इससे संख्यात गुणा अधिक है क्योंकि आकार (पर्याय ) सहित वस्तु का ज्ञान करने में बहुत समय लगता है । केवली की अपेक्षा अनाकारोपयोग का समय एक समय मात्र है। साकारोपयोग के पाठ भेद
(१) आमिनियोधिक साकारोपयोग-इन्द्रिय और मन की सहायता से योग्य स्थान में रहे हुए पदार्थों को स्पष्ट रूप से विषय