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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला (६) श्रीभूति (७) श्रीसोम (6) पत्र () महापद्म (१०) विमल वाहन (११) विपुल वाहन (१२) अरिष्ट । (समवायाग १५६) ७८५-आर्य के बारह भेद निम्न लिखित बारह तरह से प्रार्य पद का निक्षेप किया गया है। (१) नामार्य-किसी पुरुष या वस्तु आदि का नाम आर्य रख देना नामार्य कहलाता है।
(२) स्थापनार्य-गुणों की विवक्षा न करके किसी पुरुष या स्थान आदि में आर्य पद की स्थापना कर देना स्थापनार्य कहलाता है।
(३) द्रव्यार्य-झुकाये जाने के योग्य वृक्ष अदि द्रव्यार्य कहलाते हैं। जैसे विनिश वृक्ष प्रादि।
(४)क्षेत्रार्य-मगध आदि साढे पच्चीस देशों में उत्पन्न होने वाले मनुष्य आदि क्षेत्रार्य कहलाते हैं।
(५) जात्यार्य--अम्बष्ठ, कलिन्द, विदेह आदि श्रेष्ठ जातियों में उत्पन्न होने वाले जात्यार्य कहलाते हैं।
(६) कुलार्य-उग्र, भोग, राजन्य आदि श्रेष्ठ कुलों में उत्पन्न होने वाले कुलार्य कहलाते हैं।
(७) कार्य--महा प्रारम्भ के कार्यों में प्रवृत्ति न करने वाले कार्य कहलाते हैं। • (८) भाषाय-अर्ध मागधी आदि आर्य भाषाओं को बोलने वाले भाषार्य कहलाते हैं। ' (६) शिल्पार्य-रूई धुनना, कपड़े धुनना आदि से अपनी भाजीविका चलाने वाले शिल्पार्य कहलाते हैं।
(१०) ज्ञानार्य-ज्ञान की अपेक्षा नो आर्य हों वे ज्ञानार्थ कहलाते हैं । ज्ञान के मतिज्ञान, श्रुतज्ञान आदि पाँच मेद हैं।इन पाँच ज्ञानों की अपेक्षा ज्ञानार्य के भी पाँच मेद हो जाते हैं।