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श्री जैन सिद्धान्त बोल सप्रह, चौथा भाग २६५ तक इनका सेवन करने पर भी इन में अतृप्त ही मृत्यु के मुँह में चले जाते हैं और भयङ्कर वेदना वाली नरकों में उत्पन्न होते हैं। ___ चक्रवतियों की प्रव्रज्या-पहले और दूसरे चक्रवर्ती अर्थान भरत और सगर ने विनीता (अयोध्या, साकेत ) नगरी में दीक्षा ली थी। मघवान् श्रावस्ती में, सनत्कुमार, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ हस्तिनागपुर में, महापम बनारस में, हरिपेण कम्पिलपुर में और जय राजगृह में दीक्षित हुए थे। सुभूम और ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ने दीक्षा नहीं ली थी। ये दोनों हस्तिनागपुर और कम्पिलपुर नगर के अन्दर उत्पन्न हुए थे। आवश्यक सूत्र में वतलाया है कि जो चक्रवर्ती जहाँ उत्पन्न हुए थे उन्होंने उसी नगरी के अन्दर दीक्षा ली थी किन्तु निशीथ भाष्य में बतलाया गया है कि चम्पा, मथुरा आदि दस नगरियों में बारह चन्द्रवर्ती उत्पन्न हुए थे अर्थात् नौ नगरियों में तो एक एक चक्रवर्ती उत्पन्न हुआ था और एक नगरी में तीन चक्रवर्ती पैदा हुए थे अर्थात् शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ (जो कि क्रमशः सोलहवें, सतरहवें
और अठारहवें तीर्थङ्कर भी है) एक ही नगरी में उत्पन्न हुए थे। एक नगरी में कई चक्रवर्ती उत्पन्न हो सकते हैं किन्तु एक क्षेत्र में एक साथ दो चक्रवर्ती नहीं हो सकते।
राज्यलक्ष्मी और कामभोगों को छोड़ कर जो चक्रवर्ती दीक्षा ले लेते हैं वे उसी भव में मोक्ष में या श्रेष्ठ देवलोक में जाते हैं। जो चक्रवर्ती दीक्षा नहीं लेते वे भी ज्यादा से ज्यादा कुछ कम अर्द्ध पुद्गल परावर्तन के याद अवश्य मोक्ष में जाते हैं।
(परिभद्रीयावश्यक अध्ययन १) (त्रिपष्टि शलाका पुरुष चरित्र ७८४-अगामी उत्सर्पिणी के चक्रवर्ती निम्न लिखित चक्रवर्ती आगामी उत्सर्पिणी में होगे-- (१) भरत (२) दीर्घदन्त (३) गूढदन्त (8) शुद्धदन्त (५) श्रीपुत्र
कथ