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श्रो जन सिखान्त बोल संग्रह, चौथा भाग २२७ । तीथङ्करों का अभिषेक । दिशाकुमारियों द्वाग किया गया उत्सव । इन्द्रों द्वारा किया गया उत्सव । तीर्थङ्करों का स्वस्थान स्थापन ।
(५) वएडयोजनाधिकार-प्रदेश स्पर्शनाधिकार । खण्ड, योजन, क्षेत्र, पर्वत, कूट, तीर्थ, श्रेणी, विजय, द्रह और नदीद्वार।
(६) ज्योतिषीचक्राधिकार-चद्र सूर्य आदि की संख्या। सूर्यमण्डल की संख्या, क्षेत्र, अन्तर, लम्बाई,चौड़ाई,मेरु से अन्तर, हानि, धृद्धि, गतिपरिमाण, दिन रात्रि परिमाण, तापक्षेत्र, संस्थान, दृष्टिविषय, क्षेत्र गमन तथा ऊपर नीचे और तिचे ताप (गरमी)। ज्योतिषी देव की उत्पचि तथा इन्द्रों का च्यवन । चन्द्रमण्डलों का परिमाण, मण्डलों का क्षेत्र, मण्डलों में अन्तर, लम्बाई चौड़ाई और गतिपरिमाण निक्षत्र मण्डलों में परस्पर अन्तर, विष्कम्भ, मेल से दरी, लम्बाई चौड़ाई तथा गतिपरिमाण, चन्द्रगति का परिमाण -तथा उदय और अस्त की रीति ।।
(७) संवत्सरों का अधिकार-संवत्सरों के नाम व भेद । संवत्सर के महीनों के नाम । पन, तिथि तथा रात्रि के नाम । मुहर्त वकरण के नामाचर व स्थिर करण ।प्रथम संवत्सर आदि के नाम ।
(5) नक्षत्राधिकार-नक्षत्र के नाम व दिशा योग । देवता के नाम व तारों की संख्या नक्षत्रों के गोत्र व तारों की संख्या। नक्षत्र
और चन्द्र के द्वारा काल का परिमाण, कुल, उपकुल, कुलोपरात्रि पूर्ण करने वाले नक्षत्रों का पौरीषी परिमाण ।
(8) ज्योतिषी चक्र का अधिकार-नीचे तथा ऊपर के तारे तथा उनका परिवार । मेरु पर्वत से दूरी । लोकान्त तथा समतल भूमि से अन्तर । बाह्य और प्राभ्यन्तर तारे तथा उनमें अन्तर । संस्थान और परिमाण । विमान वाहक देवता । गति, अल्पमहत्व, ऋद्धि, परस्पर अन्तर तथा अग्रमहिषी । सभादोर । ८० ग्रहों के नाम | अल्पबहुत्व।