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ओ जैन सिद्धान्त बोल साह, चौथा भाग अन्य कर्मों की कितनी प्रकृतियों को वेदता है। इसका निरूपण किया गया है। अट्ठाईसवें आहार पद में कौनसे जीव किस प्रकार का आहार लेते हैं ? आहारक अनाहारक आदि पातों का विस्तार पूर्वक विवेचन किया गया है। उनतीसवाँ उपयोग पद है। इसमें साकार और अनाकार उपयोग का वर्णन है। तीसवे पद में भी उपयोग का ही विशद वर्णन है। उपयोग और पासणया (पश्यता) का पारस्परिक मेद, पश्यता के नव मेद । इकतीसवें पद में संज्ञा का विचार किया गया है । यत्तीसवें संयमपद में संयत, असंयत
और संयतासंयत आदि जीवों का वर्णन किया गया है। तेतीसवें पद का नाम अवधि पद है। इसमें अवधि ज्ञान के हीयमान और बर्द्धमान आदि मेदों का विस्तार पूर्वक वर्णन है । चौतीसवें प्रवीचार पद में मुख्य रूप से देवों के प्रवीचार ( विषय भोग) सम्बन्धी विचार किया गया है। पैतीसवाँ वेदनापद है, इसमें वेदना सम्बन्धी विचार है। किन जीवों को कौंन सी वेदना होती है, यह बतलाया गया है। छत्तीसवाँ समुद्घात पद है, इसमें समुद्घात का वर्णन है। समुद्घात का काल परिमाण, चौवीस दण्डक की अपेक्षा अतीत, अनागत और वर्तमान सम्बन्धी समुद्घात, फेवली समुद्घात करने का कारण, योगों का व्यापार आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। -
५ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति : यह कालिक,मंत्र है। इसमें जम्बूद्वीप के अन्दर रहे हुए भरत.. आदि क्षेत्र, वैताढ्य आदि पर्वत, पब आदिन्द्रह, गंगा आदि नदियाँ, ऋषम आदि कूट तथा ऋषभदेव और भरत- चक्रवर्ती का वर्णन , विस्तार से है। ज्योतिषी देव तथा उनके सुख आदिमी बताए। गए हैं। इसमें इस अधिकार हैं, जिनमें नीचे लिखें विषय वर्णित है ।