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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
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निरूपण है। पन्दहवें इन्द्रय पद में इन्द्रयों के भेद, संस्थान, अवगाहना, प्रदेश, परिमाण, उपयोग और काल अदि का वर्णन है। सोलहवें प्रयोग पद में योग के पन्द्रह भेद, विहायोगति के सतरह भेद आदि का वर्णन पाया है। सवरहवें लेश्या पद में लेश्याओं का स्वरूप, जीवों का समान आहार, शरीर, उच्छास, कर्म, वर्ण, लेश्या, वेदना और क्रिया आदि का विचार है तथा लेश्याओं के परिणाम और वर्ण श्रादि का भी वर्णन है। अठारहवें पद में जीवों की कास्थिाति का वर्णन है । उन्नीसवें सम्यक्त्व पद में सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यम्मिथ्यादृष्टि जीवों का वर्णन है । बीसवों अन्तक्रियापद है, इसमें अनन्तरागत, परम्परागत, अन्तक्रिया, केवलिकथित धर्म, असंयत भव्य देव आदि के उपपात सम्बन्धी विचार किये गए हैं। इक्कीसवाँ अवगाहना संस्थान पद है, इसमें पाँच शरीरों के संस्थान, परिमाण, पुद्गलों का चयोपचय, शरीरों का पारस्परिक सम्बन्ध, अल्पबहुत्व आदि का विस्तार के साथ वर्णन किया गया है। बाईसवें क्रियापद में कायिकी श्रादि क्रियाओं का वर्णन है । तेईसवें पद का नाम कर्मप्रकृति है। इसमें पाठ कर्मों की प्रकृतियाँ, वे कैसे और कितने स्थानों से बंधती हैं और किस प्रकार वेदी जाती हैं, प्रकृतियों का विपाक, स्थिति (जघन्य और उत्कृष्ट), वन्धस्वामित्व आदि का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है। चौवीस .कर्मबन्ध पद में बतलाया गया है कि ज्ञानावरणीयादि कर्म चाँधते समय दूसरी कितनी प्रकृतियों का बन्ध होता है ? पञ्चीस कर्मवेद पद में बतलाया गया है कि ज्ञानावरणीयादि कर्म बाँधते समय जीव कितनी प्रकृतियों का वेदन करता है ? छब्धीसवें पद में यह पतलाया गया है कि ज्ञानावरणीयादि कर्मप्रकृतियों का वेदन करता हुआ जीव कितनी कर्म प्रकृतियाँ बाँधता है। सनाईसवें कर्मवेद पद में ज्ञानावरणीयादि कर्मों को वेदता हुआ जीव