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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग २२१ मनुष्य लोक का शाश्वतपना । इन्द्र के च्यवन का अधिकार । पुष्कर समुद्र । वरुण द्वीप और वरुप समुद्र । क्षीरद्वीप और क्षीरसमुद्र । घृत द्वीप व घृत समुद्र । इन द्वीप व इतु समुद्र नन्दीश्वर द्वीप व नन्दीथर समुद्र ।अनेक द्वीप समुद्रों का वर्णन । यावत् कह कर स्वयम्भूरमण समुद्र का वर्णन | असंख्यात् द्वीप समुद्रों के नाम । अलगअलग समुद्रों के पानी का स्वाद । समुद्रों में मत्स्यों का वर्णन। द्वीप समुद्रों की गिनती का प्रमाण व परिणाम । इन्द्रियों के विषय, पुगल परिणाम | चन्द्र और तारों की समानता । मेरु तथा समभूमि से अन्तर । आभ्यन्तर और वाह्य नक्षत्र | चन्द्र विमान का संस्थान तथा लम्बाई चौड़ाई । ज्योतिषी विमान उठाने वाले देवों का विस्तार । शीघ्र गति व मन्द गति । हीनाधिक ऋद्धि । परस्पर धन्तर वैमानिक देव तथा देवियों का विस्तार। (४) प्रतिपत्ति-एकेन्द्रिय आदि पाँच प्रकार के जीव । (५) प्रतिपत्ति-पृथ्वी आदि छकाय के जीवों का वर्णन । (६) प्रतिपत्ति-सात प्रकार के जीवों का वर्णन । (७) प्रतिपनि-आठ प्रकार के जीव । (८) प्रतिपत्ति-नौ प्रकार के जीवोंका संक्षिप्त वर्णन | (8) प्रतिपत्ति-दस प्रकार के जीव । समुचय जीवाभिगम -जीवों के दो से लेकर दस तक भेद ।
(४) पन्नवणासूत्र जीवानीवाभिगम सूत्र के बाद पनवणा सूत्र आता है। अंग सूत्रों में चौथे अंग सूत्र समवायांग का यह उपांग है। समवायोग में जीव, अजीव, स्वसमय, परसमय, लोक, अलोक आदि विषयों का वर्णन किया गया है । एक एक पदार्थ की वृद्धि करते हुँए सौ पदार्थों तक का वर्णनं समवायांग सूत्र में है। इन्हीं विषयों का