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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला वर्यान विशेषरूप से पन्नवणा में किया गया है । इसमें ३६ पद हैं। एक एक पद में एक एक विषय का वर्णन है।
आगमों में चार प्रकार के अनुयोगों का निरूपण किया गया है। (१) द्रव्यानुयोग (२) गणितानुयोग (३) चरणकरणानुयोग (४)धर्मकथानुयोग द्रव्यानुयोग में जीव,पुद्गल,धर्म,अधर्म, आकाश, काल, द्रव्य आदि का वर्णन आता है ।गणितानुयोग में मनुष्य विर्यच, देव, नारक श्रादि की गिनती आदि का वर्णन होता है। चरणकरणानुयोग में चारित्रसम्बन्धी और धर्मकथानुयोग में कथा द्वारा धर्म के उपदेश आदि का वर्णन पाता है । पनवणा सूत्र में मुख्य रूप से द्रव्यानुयोग का वर्णन आता है। इसके सिवाय कहीं कहीं पर चरणकरणानुयोग और गणितानुयोग का विषय भी आया है। इसमें ३६ पद हैं।
पहले प्रज्ञापनापद के दो मेद है-अजीव प्रज्ञापना और जीव प्रज्ञापना। अजीव प्रज्ञापना में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय
आकाशास्तिकाय, काल और पुद्गलास्तिकाय के भेद प्रमों का वर्णन है। जीव प्रज्ञापना में जीवों के सविस्तार मेदों का वर्णन है। मनुष्यों के मेदों में आर्य (जाति आर्य, कुल आर्य आदि) और म्लेच्छ आदि का भी विस्तारपूर्वक वर्णन है।दूसरे स्थानपद में पृथ्वीकायिक से लेकर सिद्धों तक के स्थान क वर्णन है। तीसरा अल्पवहुत्व पद है। इसमें दिशाद्वार, गतिद्वार, इन्द्रियद्वार, काय द्वार आदि २६ द्वारों से अल्पबहुत्व का विचार किया गया है
और २७वें महादण्डक द्वार में सब जीवों का विस्तारपूर्वक अन्पबहुत्व कहा गया है। चौथे स्थितिपदद्वार में चौवीस दण्डकों की अपेक्षा सब जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट भायु का वर्णन किया गया है। पांचवें पद का नाम विशेष अथवा पर्याय पद है। इसमें जीव और अजीवों के पर्यायों का वर्णन है। छठे व्युत्क्रान्ति पद में जीवों