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at प्रातःकाल
सरे दिन प्राता माँगने लग
श्री जेन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग २०७ एक वार अर्ध रात्रि के समय धर्म जागरणा करते हुए धन्ना मुनि को ऐसा विचार उत्पन्न हुआ कि मेरा शरीर तपस्या से सूख चुका है। अब इस शरीर से विशेष तपस्या नहीं हो सकती, इस लिए प्रातःकाल भगवान् से पूछ कर संलेखना संथारा करना ठीक है ।ऐसा विचार कर दूसरे दिन प्रातःकाल धन्ना मुनि भगवान् के. पास उपस्थित हो संलेखना करने की आज्ञा माँगने लगे। भगवान् से आज्ञा प्राप्त कर कड़ाही स्थविरों (संथारे में सहायता देने वाले साधुओं) के साथ धन्ना मुनि विपुलगिरि पर आए और स्थविरों की साक्षी से संलेखना संथारा किया ।एक महीने की संलेखना करके और नव महीने संयम पालन कर यथावसर काल कर गये। धन्ना मुनिकाल कर गए हैं यह जान कर कड़ाही स्थविरों ने काउसम्ग किया । तत्पश्चात् धन्ना मुनि के भएडोपकरण लेकर भगवान् की सेवा में उपस्थित हुए और भएडोपकरण रख दिए ।
गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान् ने फरमाया कि धना मुनि यथावसर काल करके सर्वार्थसिद्ध विमान में तेतीस सागरोपम की स्थिति से देव रूप से उत्पन्न हुआ है और वहाँ से चब कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा और वहाँ से मोक्ष में जायगा।
आगे के नौ ही अध्ययनों का वर्णन एक सरीखा ही है सिर्फ नाम आदि का फरक है वह निम्न प्रकार है
नाम माता ग्राम विमान सुनक्षत्र भद्रा काकन्दी सर्वार्थसिद्ध ऋषिदास , राजगृही " पेल्लकपुत्र रोमपत्र
श्वेताम्विका चन्द्रकुमार पोष्टिकपुत्र .
वाणिज्यग्राम