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श्री सेठियाजेन प्रन्थमाला उधर स्पर्श नहीं होने देता किन्तु एक दम सीधा बिल में प्रवेश कर जाता है, धन्ना मुनि भी इसी प्रकार पाहार करते अर्थात् स्वाद लेने की दृष्टि से मुंह में इधर उधर न लगाते हुए सीधा गले के नीचे उतार लेते। __इस प्रकार उग्र तपस्या करने के कारण धना मुनि का शरीर अतिकश (बहुत दुबला) होगया। उनके पैर, पैरों की अङ्गलियाँ, घुटने, कमर, छाती, हाथ, हाथ की अङ्गुलियाँ, गरदन, नाक, कान, आँख श्रादि शरीर का प्रत्येक अवयव शुष्क हो गया ।शरीर की हड्डियाँ दिखाई देने लग गई । जिस प्रकार कोयलों से भरी हुई गाड़ी के चलने से शब्द होता है उसी प्रकार चलते समय और उठते बैठते समय धना मुनि की हड्डियाँ करड़ करड़ शब्द करती थीं। शरीर इतना सूख गया था कि उठते बैठते, चलते फिरते, और भाषा पोलते समय भी उन्हें खेद होता था । यद्यपि धन्ना मुनि का शरीर तो सूख गया था किन्तु तपस्या के तेज से वे सूर्य की तरह दीप्त थे।
ग्रामानुग्राम विचरते हुए भगवान् राजगृही नगरी में पधारे। वन्दना नमस्कार करने के पश्चात् श्रेणिक राजा ने भगवान से प्रश्न , किया कि हे भगवन् ! आपके पास इन्द्रभूति आदि सभी साधुओं में कौनसा साधु महादुष्कर क्रिया और महानिर्जरा का करने वाला है? तब भगवान ने फरमाया कि हे श्रेणिक! इन सभी साधुओं में धन्नामुनि महा दुष्कर क्रिया और महानिर्जरा करने वाला है । भगवान से ऐसा सुनकर श्रोणिक राजा धन्ना मुनि के पास आया, हाथ जोड़, तीन बार वन्दना नमस्कार कर यों कहने लगा कि हे देवानुप्रिय! तुम धन्य हो, तुम पुण्यवान हो, तुम कृतार्थ हो, मनुष्य जन्म प्राप्ति का फल तुमने प्राप्त किया है । तुम ऐसी दुष्कर क्रिया करने वाले हो कि भगवान ने अपने मुख से तुम्हारी प्रशंसा की है।