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• श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग २८३ लट्ठदन्त (८) विहन्तकुमार (8) विहांसकुमार (१०) अभयकुमार ।
राजगृही नगरी में श्रेणिक राजा राज्य करते थे। उनके धारिणी नाम की रानी थी। उनके पुत्र का नाम जाली कुमार था । एक समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे। धर्मोपदेश सुन कर जाली कुमार को वैराग्य उत्पन्न होगया । माता पिता से आज्ञा लेकर जाली कुमार ने प्रव्रज्या अङ्गीकार की। भगवान् को वन्दना नमस्कार कर गुणरत्नसंवत्सर तप अङ्गीकार किया। सूत्रोक्त विधि से उसे पूर्ण कर और भी विचित्र प्रकार का तप करता हुआ विचाने लगा । सोलह वर्ष संयम का पालन कर अन्तिम समय में संलेखना संथारा कर विजय विमान में देवता रूप से उत्पन्न हुआ। वहाँ से चव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा और वहाँ संयम ले कर उसी भव में मोक्ष जायगा।
मयाली अदि नव ही कुमारों का वर्णन जालीकुमार सरीखा ही है।दीक्षापर्याय और विमान आदि के नाम निम्न प्रकार हैनाम माता पिता दीक्षापर्याय विमान का नाम मयाली धारिणी श्रेणिक सोलह वर्ष वैजयन्त उवयाली , " "
जयन्त पुरुपसेन " .
अपराजित वारिसेन ,
सर्वार्थसिद्ध दीर्घदन्त " " , बारहवपं लठ्ठदन्त " " "
अपराजित विहल्लकुमार चेलणा " .. नयन्त विहांसकुमार , पाँच वर्ष वैजयन्त अभय , नन्दादेवी , विजय
ये सभी महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष पद प्राप्त करेंगे। (२)वर्ग-इसमें तेरह अध्ययन हैं। तेरह में तेरह व्यक्तियों