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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग
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कुल मिला कर ४८० दिन होते है अर्थात् सोलह महीनों में यह तप पूर्ण होता है ।
नोट- मिट्टी की पाल चाँध कर वर्षा के पानी में अपने पात्र की नाव तिराने का अधिकार श्री भगवती सूत्र में है, यहां नहीं है।
सोलहवें अध्ययन में अलख राजा का वर्णन है। ये वाराणसी नगरी में राज्य करते थे । एक समय भ्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे । अलख राजा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज्य सौंप कर भगवान् के पास दीक्षा ग्रहण की। ग्यारह भङ्ग का ज्ञान पढ़ा। बहुत वर्षों तक संयम का पालन कर मोक्ष पधारे।
(७) वर्ग - इसमें तेरह अध्ययन हैं। उनके नाम - (१) नन्दा (२) नन्दवती (३) नन्दोत्तरा (४) नन्दसेना (५) मरुता ( ६ ) सुमरुता (७) महामरुता (८) मरुदेवी (६) भद्रा (१०) सुभद्रा (११) सुजाता (१२) सुमति (१३) भूतदीना ।
उपरोक्त तेरह हो राजगृही के स्वामी श्रेणिक राजा की रानियाँ थीं । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास धर्मोपदेश सुन कर वैराग्य उत्पन्न हुआ । श्रोणिक राजा की आज्ञा लेकर प्रव्रज्या अङ्गीकार की। ग्यारह अंग का ज्ञान पढ़ी। बीस वर्ष संयम का पालन कर मोच में पधारीं ।
(८) वर्ग - इसमें दस अध्ययन हैं। उनके नाम - (१) काली (२) सुकाली (३) महाकाली (४) कृष्णा (५) सुकृष्णा ( ६ ) महा कृष्णा (७) वीरकृष्णा (८) रामकृष्णा (६) प्रियसेन कृष्णा (१०) महासेनकृष्णा
ये सभी भणिक राजा की रानियाँ और कोणिक राजा की चुलमाताएं (छोटी माताएं ) थीं। इनका विस्तार पूर्वक वर्णन श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह तीसरे भाग के दसवें बोल संग्रह के बोल नं०६८६ में दिया गया है। यहाँ सिर्फ दीक्षा पर्याय और तप