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नाम
जाली
मयाली
उवयाली
पुरुपसेन
वारिसेन
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग
पिता
माता
नगरी
वसुदेव राजा धारिणी रानी द्वारिका
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प्रद्युम्न कुमार श्रीकृष्ण रुक्मिणी साम्य कुमार नम्बूवती अनिरुद्ध” प्रद्युम्नकुमार वैदर्भी सत्यनेमि समुद्र विजय शिवादेवी
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१६५
संयम काल
१६ वर्ष
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ढ़ने म
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इन सब ने सोलह वर्ष संयम का पालन किया और अन्तिम समय में केवलज्ञान केवलदर्शन उपार्जन कर मोक्ष में पधारे ।
( ५ ) वर्ग- इसके दस अध्ययन हैं। यथा- पद्मावती, गौरी, गान्धारी, लक्ष्मणा, सुषमा, जम्बूवती, सत्यभामा, रुक्मिणी, मूलश्री, मूलदत्ता । इनमें से पहले की आठ कृष्ण महाराज की रानियाँ हैं । इन्होंने भगवान् अरिष्टनेमि के पास दीक्षा ली । ग्यारह अङ्ग का ज्ञान पढ़ा। बीस वर्ष तक संयम का पालन कर अन्तिम समय में केवल ज्ञान और केवलदर्शन उपार्जन कर मोक्ष में पधारीं । इन सब में पद्मावती रानी का अध्ययन बहुत विस्तृत है । इसमें द्वारिका नगरी के विनाश का कारण, श्रीकृष्ण जी की मृत्यु का कारण, श्रीकृष्णजी का आगामी चौवीसी में तीर्थङ्कर होना आदि बातों का कथन भी बहुत विस्तार के साथ है।
मुलश्री और मूलदत्ता का सारा अधिकार पद्मावतीं रानी सरीखा ही है । ये दोनों कृष्ण वासुदेव के पुत्र और जम्बूवती रानी के अजात श्री साम्बकुमार की रानियाँ थीं। ये भी मोक्ष में गई 1