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श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला
परिणामों की विशुद्धता के कारण उनको तत्क्षण केवलज्ञान और केवलदर्शन उत्पन्न होगए और वे मोन में पधार गये।
इसी कथा के अन्तर्गत गजसुकुमाल से बड़े ६ पुत्रों का हरिणगमेषी देव द्वारा हरण, भदिलपुर नगरी में नाग गाथापति की धर्मपत्नी सुलसा के पास रखना, वहाँ उनका लालन पालन होकर दीक्षा लेना, द्वारिका में गोचरीजाने पर उन्हें देख कर देवकी का आश्चर्य्य करना, तथा भगवान के पास निर्णय करना, इत्यादि वर्णन बड़े ही रोचक शब्दों में विस्तार पूर्वक किया गया है । भगवान् को बन्दना नमस्कार करने के लिए श्रीकृष्ण वासुदेव का आना, अपने छोटे भाई गजसुकुमाल के लिए पूछना, श्रीकृष्ण को देखते ही सोमिल ब्राह्मण की जमीन पर गिर कर मृत्यु होना आदि विषय भी बहुत विस्तार के साथ वर्णित हैं।
नौ से ग्यारह अध्ययन तक सुमुख, दुर्मुख और कुबेर कुमार का वर्णन है। ये तीनों बलदेव राजा और धारिणी रानी के पुत्र थे। वीस वर्ष तक संयम का पालन कर मोक्ष पधारे। इनकी दीक्षा भगवान् नेमिनाथ के पास हुई थी।
चारहवें और तेरहवें अध्ययन में दारुणकुमार और अनाष्टि कुमार का वर्णन है । ये वसुदेव राजा और धारिणी रानी के पुत्र थे।शेष सारा वर्णन पहले की तरह ही है।
(४) वर्ग-इसमें दस अध्ययन हैं, यथा-जाली, मयाली, उवयाली, पुरुषसेन, वारिसेन, प्रद्युम्न, साम्ब, अनिरुद्ध, सत्यनेमि और दृढ़नेमि।
इन सब का अधिकार एक सरीखा ही है । गौतम कुमार के अध्ययन की इसमें भलामण दी गई है। सिर्फ इनके माता पिता ,आदि के नामों में फरफ है । वह इस प्रकार है