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श्री जैन सिद्धान्त बोल समूह, चौथा भाग १३ दीत्ता पर्याय का पालन कर मोक्ष में पधारे।
(३) वर्ग-इस के तेरह अध्ययन है । (१) अनीकसेन (२) अनन्तसेन (३) अजितसेन (४) अनिहत रिप (१) देवसेन (६) शत्रुसेन (७) सारण (८) गजसुकुमाल (६) सुमुख.(१०) दुर्मुख (११) कुवेर (१२) दारुक (१३) अनादिट्टि (अनादृष्टि)।
इन में अनीकसेन, अनन्तसेन, अजितसेन, अनिहतारिप, देवसेन और शत्रुसेन इन छ: कुमारों का वर्णन एक सरीखा ही है। वे महिलपुर नगरनिवासी नाग गाथापति और सुलसा के पुत्र थे। ३२-३२ स्त्रियों के साथ विवाह हुआ था। भगवती स्त्र में कथित महावल कुमार की तरह ३२-३२ करोड़ सोनेयों का प्रीति दान दिया गया।चीस वर्ष दीक्षा पर्याय का पालन कर मोक्ष पधारे।
सातवें अध्ययन में सारणकुमार का वर्णन है। इनके पिता का नाम वसुदेव और माता का नाम धारिणी था। पचास कन्याओं के साथ विवाह और ५० करोड़ सोनयों का प्रीतिदान मिला। भगवान् अरिष्टनेमि के पास दीक्षित हुए। चौदह पूर्व का ज्ञानाध्ययन किया। बीस वर्ष संयम का पालन कर मोक्ष पधारे।।
आठवें अध्ययन में गजसुकुपाल का वर्णन है। इनके पिता वसुदेव राजा और माता देवकी थी । कृष्ण वासुदेव इनके बड़े भाई थे। पाल वय में गजसुकुमाल ने भगवान् अरिष्टनेमि के पास दीक्षा ले ली । जिस दिन दीक्षा ली उसी दिन बारहवीं मिक्खु-. पडिमा अङ्गीकार की और श्मशान भूमि में ध्यान धर कर खड़े रहे ।इसी समय सोमिल ब्राह्मण उघर से आ निकला । पूर्व पैर के जागृत हो जाने के कारण उसने गनसुकुमाल के शिर पर गीली मिट्टी की पाल पांघ कर खैर की लकड़ी के अंगारे रख दिये जिससे उनका सिर खिचड़ी की तरह सीझने लगा किन्तु गजसुकुमाल मुनि इस तीव्र वेदना को समभाव पूर्वक सहन करते रहे। परिणाग में किसी प्रकार की चंचलता एनं कलुषता न आने दी।