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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला अन्तकृत् कहलाते हैं अथवा जीवन के अन्तिम समय में केवलज्ञान और केवलदर्शन-उपार्जन कर मोक्ष जाने वाले जीव अन्तकृत् कहलाते हैं ।ऐसे जीवों का वर्णन इस सूत्र में है इस लिए यह सत्र अन्तकृदशा(अन्तगड़दसा) कहलाता है। अन्तगड़ अङ्ग स्त्रों में आठवाँ है। इसमें एक ही अतस्कन्ध है। पाठ वर्ग हैं। अध्ययन हैं जिनमें गौतमादि महर्षि और पद्मावती आदिसतियों के चरित्र हैं। प्रत्येक वर्ग में निम्न लिखित.अध्ययन हैं।
(१)वर्ग-इसमें दस अध्ययन हैं । पहले अध्ययन में गौतमकुमार का वर्णन है।द्वारिका नगरी में कृष्ण वासुदेव राज्य करते थे। उसी नगरी में अन्धविष्णु नामक राजा थे। उनकी रानी का नाम धारिणी था। उनके ज्येष्ठ पुत्र का नाम गौतमकुमार था। उनका विवाह आठ राजकन्याओं के साथ, किया गया था। कुछ समय के पश्चात् भगवान् अरिष्टनेमि के पास दीक्षा लेकर चारह वर्ष संयम का पालन किया।अन्तिम समय में केवलज्ञान, केवलदर्शन उपार्जन कर मोक्ष पधारे।
आगे नौ अध्ययनों में क्रमशः समुद्रकुमार, सागर, गम्भीर, स्तिमित, अचल. कपिल, अक्षोभ, प्रसेनजित और विष्णु, इन नौ कुमारों का वर्णन है । ये सभी अन्धक विष्णु राजा और धारिणी रानी के पुत्र थे।समी का वर्णन गौतमकुमार सरीखा ही है ।समी ने दीचा लेकर बारह वर्ष संयम का पालन किया । अन्तिम समय में केवली होकर मोक्ष पधारे।
(२) वर्ग-इस वर्ग के आठ अध्ययन हैं। इनमें (१) अक्षोभ (२)सागर (३) समुद्रविजय (४) हिमवन्त (५)अचल (६) धरण (७) पूरण, और (८) अमीचन्द, इनका वर्णन है। इन आठों के . पिता का नाम अन्धकविष्णु और माता का नाम धारिणीरानीथा। इनका सारा वर्णन गौतमकुमार सरीखा ही है। सोलह वर्ष की