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श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, चौथा भाग सेवा करने वाले उपासक कहे जाते है । दशा नाम'अध्ययन तथा चर्या का है। इस सत्र में दस श्रावकों के अध्ययन होने से यह उपासक दशा कहा जाता है । इसके प्रत्येक अध्ययन में एक एक श्रावक का वर्णन है । इस प्रकार दस अध्ययनों में दस भावकों का वर्णन है। इनमें श्रावकों के नगर, उद्यान वनखण्ड, भगवान के समवसरण, राजा, माता पिता, धर्माचार्य,धर्मकथा, इहलौकिक और पारलौकिक ऋद्धि, मोग, भोगों का परित्याग, तप, बारह व्रत तथा उनके अतिचार, पन्द्रह कर्मादान, पडिमा, उपसर्ग, संलेखना, भक्त प्रत्याख्यान, पादपोपगमन, स्वर्गगमन आदि विषयों का बहुत विस्तार के साथ वर्णन किया गया है। इसमें एक हीथुतस्कन्ध है, दस अध्ययन हैं। जिनमें निग्न लिखित श्रावकों का जीवन है।
(१) आनन्द (२) कामदेव(३)चुलनिपिता (४)सुरादेव (५) चुल्लशतक (६) कुरडकोलिक (७) सद्दालपुत्र (८) महाशतक ६) नन्दिनीपिता (१०) शालेयिकापिता।
भगवान महावीर स्वामी के श्रावकवर्ग में ये दस श्रावक मुख्य रूप से गिनाए गए हैं। निग्रन्थ प्रवचनों में उनकी दृढ़ श्रद्धाथी। भगवान् पर उनकी अपूर्व भक्ति थी और प्रभु के वचनों पर उन्हें दृढ़ श्रद्धा थी। गृहस्थाश्रम में रहते हुए उन्होंने किस प्रकार धर्म, अर्थ और मोक्ष की साधना की थी और गृहस्थावास में रहता हुआ व्यक्ति किस प्रकार आत्मविकास करता हुआ मोक्ष का अधिकारी हो सकता है। यह उनके जीवन से भली भांति मालूम हो सकता है।
इन श्रावकों के जीवन का विस्तृत वर्णन श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, तृतीय भाग के दसवें बोल संग्रह के बोल नं०६८५ में दिया गया है।
(८) अन्तगड दसांग सूत्र आठ कर्मों का नाश कर संसार रूपी समुद्र से पार उतरने वाले