________________
श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला (६) वर्ग-इसमें सोलह अध्ययन हैं। यथा-(१) मकाई (२)विक्रम (३)मुद्गरपाणि यक्ष (अर्जुन माली) (१)काश्यप (५) क्षेम (६) धृतिघर (७) कैलाश (क) हरिश्चन्द्र (8) विरत (१०) सुदर्शन (११) पूर्णभद्र (१२) सुमनभद्र (१३) सुप्रतिष्ठ (१४) मेष (१५) अतिमुक्त कुमार (१६) अलख राजा।।
राजगृही नगरी के अन्दर पकाई और विक्रम नाम के गाथापति रहते थे। दोनों ने श्रमण भगवान महावीर के पास दीक्षा ली। गुणरल संवत्सर तप किया। सोलह वर्ष संयम का पालन कर विपुलगिरि पर सिद्ध हुए।
तीसरे अध्ययन में अर्जुन माली का वर्णन है। उसकी भार्या कानाम बन्धुमती था।नगर के बाहर उसका एक बाग था। उसमें मुद्गरपाणि यच का यक्षायतन (देहरा)था।अर्जुन माली के वंशज परम्परा से उस यक्ष की पूजा करते आ रहे थे। न माली बचपन से ही उसका भक्त था।वह पुष्पादि से उसकी पूजा किया करता थाएक समय ललितादि छः गोठीले पुरुष उस बगीचे में आये
और देहरे में छिप कर बैठ गए । जव अर्जुन माली देहरे में आया, वे लोग एक दम उठे और उसको मुश्कें वाँध कर नीचे गिरा दिया और बन्धुमतीभार्या के साथ यथेच्छ कामभोग भोगने लगे। इस अवस्था को देख कर वह बहुत दुखित हुआ और यक्ष को धिक्कारने लगा कि वह ऐसे समय में भी मेरी सहायता नहीं करता है। उसी समय यक्ष ने उसके शरीर में प्रवेश किया। उसके बन्धन तोड़ डाले।वन्धन के टूटते ही एक हजार पल निष्पन मुद्गर को लेकर उसने अपनी स्त्री और छहों पुरुषों को मार डाला । तब से राजगृही नगरी के बाहर घूमता हुआ यक्षाधिष्ठित अर्जुन माली प्रतिदिन छ. पुरुष और एक स्त्री को मारने लगा । राजा श्रेणिक ने नगर के दरवाजे बन्द करवा दिए और शहर में ढिंढोरा पिटवा