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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (११) अध्ययन-धर्म की आराधना और विराधना के लिए दावदव का दृष्टान्त ।
(१२) अध्ययन-सद्गुरु सेवा के लिए उदकज्ञात का दृष्टान्त । (१६) अध्ययन सद्गुरु के अभाव में गुणों की हानि बताने के लिए ददुर का दृष्टान्त ।
(१४) अध्ययन-धर्म प्राप्ति के लिए अनुकूल सामग्री की आवश्यकता बताने के लिए तेतलीपुत्र का दृष्टान्त ।
(१५)अध्ययन-चीतराग के उपदेश से ही धर्म प्राप्त होता है, इसके लिए नंदीफल का दृष्टान्त ।
(१६) अध्ययन-विषयसुख का कड़वा फल बताने के लिए अपरका के राजा और द्रौपदी की कथा ।
(१७) अध्ययन-इन्द्रियों के विषयों में लिप्त रहने से होने वाले अनर्थों कोसमझाने के लिए आकीण जाति के घोड़े का दृष्टान्त ।
(१८) अध्ययन-संयमी जीवन के लिए शुद्ध और निर्दोष श्राहार निर्ममत्व भाव से करने के लिए सुषुमा कुमारी का दृष्टान्त ।
(१६) अध्ययन-उत्कृष्ट भाव से पालन किया गयाथोड़े समय का संयम भी अत्युपकारक होता है, इसके लिए पुंडरीक का दृष्टान्त । इन कथाओं को विस्तृत रूप से १६ वें बोल संग्रह में दिया जायगा।
दूसरा श्रुतस्कन्ध इसमें धर्म कथाओं के द्वारा धर्म का स्वरूप बतलाया गया है
(१) वर्ग-पहले वर्ग के पाँच अध्ययन हैं, जिनमें क्रमशः चमरेन्द्र की काली, राजी, रजनी, विद्युत और मेघा नाम की पॉच अग्रमहिषियों का वर्णन है।
प्रथम अध्ययन-इसमें काली अग्रमहिषी का वर्णन आता है। , चमरचश्वा राजधानी के कालावतंसक भवन में कालीदेवी अपने परिवार सहित काल नाम के आसन पर बैठी थी। उसो समय उसने