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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग
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इसी तरह वेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय के बारह बारह शतक तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय के इक्कीस महायुग्म शतक और राशियुग्म शतक एक एक दिन में पढ़ने और पढ़ाने चाहिए ।
(६) श्री ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र यह छठा अंग है। इसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं-ज्ञाता और धर्मकथा । पहले तस्कन्ध में उन्नीस अध्ययन हैं। प्रत्येक अध्ययन में एक एक कथा है और अन्त में उस कथा या दृष्टान्त से मिलने वाली शिक्षा बताई गई है। कथाओं में नगर, उद्यान, महल, शय्या, समुद्र, स्वप्न आदि का सुन्दर वर्णन है।
पहला श्रुतस्कन्ध (१) ध्ययन-मेघकुमार की कथा । (२) अध्ययन-धन्ना सार्थवाह और विजय चोर। (३) अध्ययन-शुद्ध समकित के लिए अण्डे का दृष्टान्त ।
(४) अध्ययन-इन्द्रियों को वश में रखने यास्वच्छद छोड़ने वाले साधु के लिए कछुए का दृष्टान्त ।
(५) अध्ययन-भूल के लिए पश्चात्ताप करके फिर संयम में दृढ होने के लिए शैलक राजर्पि का दृष्टान्त ।
(६) अध्ययन-आत्मा का गुरुत्व और लघुत्व दिखाने के लिए तुम्बे का दृष्टान्त।
(७) अध्ययन-आराधक और विराधक के लाभालाम बताने के लिए रोहिणी की कथा |
(८) अध्ययन-भगवान् मल्लिनाथ की कथा ।
(8) अध्ययन-कामभोगों में आसक्ति और विरक्ति के लिए जिनपाल और जिनरक्ष का दृष्टान्त ।
(१०) अध्ययन अमादी, अप्रमादी के लिए चांद का दृष्टान्त ।