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________________ १६४ श्रीसेठिया जैन प्रन्थमाला का पश्चात्ताप । भगवान के शरीर में पीड़ाकारी दाह, उसकी शान्ति के लिए रेवती श्राविका के घर से विजोरापाक मंगाकर सेवन करना, रोग की शान्ति । सुनक्षत्र, सर्वानुभूति और गोशालक मर कर कहाँ गये और वहाँ से चव कर कहाँ जावेंगे इत्यादि प्रश्नोत्तर। सोलहवां शतक (१) उ०-चौदह उद्देशों के नाम सूचक गाथा, वायुकाय की उत्पत्ति, वायुकाय का मरण, लोहे के चोट मारने वाले को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? जीव अधिकरणी है या अधिकरण, जीव आत्माधिकरणी, पराधिकरणी या तदुभयाधिकरणी है ? शरीर, इन्द्रिय, योग आदि के मेद। (२) उ०-जीवों को जरा और शोक होने का कारण । बरा और शोक का प्रश्न २४ दण्डकों में, पॉच प्रकार के अवग्रह का प्रश्न, शक्रन्द्र सत्यवादी है या मिथ्यावादी शक्रन्द्र सावध भाषा बोलता है या निरवध ? शक्रन्द्र भवसिद्धिक है या अभवसिद्धिक । कर्म चैतन्यकृत है या अचैतन्यकृत इत्यादि प्रश्नोत्तर। (३) उ०-कर्मप्रकृतियाँ, ज्ञानावरणीय कर्म को वेदता हुआ जीव कितनी प्रकृतियों को वेदता है ? काउसग्ग में स्थित मुनि के अर्शको काटने वाले वैध और मुनि को कौनसी और कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? आतापना की विधि। . (४) उ०-एक उपवास से साधु जितनी कर्म निर्जरा करता है, नारकी जीव हजार वर्ष में भी उतनी निर्जरा नहीं कर सकता है। श्रमण के अधिक कर्म क्षय होने का कारण तथा प्रश्नोचर । (५) उ. क्या देव वाह्य पुद्गलों को ग्रहण किए बिना यहाँ' पाने में या अन्य क्रिया करने में समर्थ है ? गंगदत्त देव का भगवान के पास आगमन । गंगदत्त देव भवसिद्धिक है या अमवसिद्धिक १ गंगदत्त देव को यह ऋद्धि कैसे मिली ? गंगदत्त देव के
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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