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________________ श्रो जेन सिद्धान्त बोल साह, चौथा भाग १६५ पूर्वभव का कथन और उसकी स्थिति आदि का वर्णन। (६)उ०-स्वप्नों का वर्णन । तीथङ्कर, चक्रवर्ती, वलदेव, वासुदेव, माण्डलिक राजा की माता कितने स्वप्न देखती है ? छमस्थावस्था में देखे हुए भगवान् महावीर के दस स्वप्न और उनका फल । दूसरे सामान्य स्वप्नों के फल आदि का कथन । (७)उ०-उपयोग के मेद, श्री पन्नत्रणा सूत्र के उपयोग पद की भलामण। (८)उ०-लोक का पूर्व, दक्षिण, ऊपर, नीचे का चरमान्त, रत्नप्रभा आदि के पूर्व, चरमान्त आदि की वक्तव्यता, कायिकी आदि क्रियाओं का कथन । देव अलोक में हाथ फैलाने में समर्थ है या नहीं ? (8)उ०-वलीन्द्र की सभा का अधिकार । (१०) उ०-अवधिज्ञान के मेदाश्री पन्नवणा मूत्र के तेतीसवें अवधि पद की भलामण । (११) उ०-द्वीपकुमारों के आहार, लेश्या आदि का प्रश्नोत्तर। (१२-१४)उ०-वारहवें उद्देशे में उदधिक्कुमार, तेरहवें उद्देशे में दिशाकुमार और चौदहवे उद्देशे में स्तनितकुमारों के अाहार, लेश्या आदि का अधिकार है। . सतरहबॉ शतक (१)उद्देशा-उदायी हस्ती कहाँ से मर कर आया है और मर कर कहाँ जायगा ? कायिकी आदि क्रियाओं का अधिकार, ताड़ वृक्ष को तथा वृक्ष के मूल को और कन्द को हिलाने वाले को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? शरीर, इन्द्रिय, योग इत्यादि का कथन । औदायिक, पारिणामिक आदि छ. भावों का कथन । (२)उ०-संयत, विरत जीव धर्म, अधर्म या धर्माधर्म में स्थित होता है ? २४ दण्डकों में यही प्रश्न वालमरण, पण्डित
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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