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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला करते हैं। गति प्रपात का वर्णन, इसके लिए श्री पनवणा के प्रयोग पद की भलामण ।
(८)उ०-प्रत्यनीक का स्वरूप, गुरुप्रत्यनीक, गतिप्रत्यनीक, समूहप्रत्यनीक, अनुकम्पा प्रत्यनीक, भुतप्रत्यनीक, भावप्रत्यनीक, इन छहों के अवान्तर तीन तीन भेद, व्यवहार के पाँच मेद, पंध के मेद, २२ परिपह और उन परिषहों का ज्ञानावरणीयादि चार कर्मों की अवान्तर प्रकृतियों में अन्तर्भाव । कर्म बन्ध रहित अयोगी केवली को कितने परिषह होते हैं ? उगता हुआ सूर्य दूर होते हुए भी पास कैसे दिखाई देता है ? इत्यादि सूर्य सम्बन्धी प्रश्न । चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र आदि के उगने सम्बन्धी प्रश्न ।मानुपोतर पर्वत से बाहर सूर्य चन्द्र श्रादि का प्रश्न । उत्तर के लिए श्री जीवामिगम की भलामण ।
(३) उ०-वन्ध के दो भेद-विससा बन्ध, प्रयोगवन्ध । विससा के दो भेद-सादि, अनादि । प्रयोग वन्ध के तीन भेद-अनादि अपर्यवसित, सादि अपर्यवसित, सादि सपर्यवसित । सादि सपर्यवसित के चार भेद-भालापन बन्ध, पालीन बन्ध, शरीर बन्ध, शरीर प्रयोग वन्ध । बन्धों के अवान्तर भेद और स्थिति काल धादि का विस्तृत विचार ।
(१०) उ०-शील श्रेष्ठ है या श्रुत, इस पर चौभङ्गी । ज्ञान, दर्शन और चारित्र की जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट तीन आराधना,
और उनके फल, पुद्गल परिणाम के भेद, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, संस्थान परिणाम के मेद, पुद्गलास्तिकाय का द्रव्य देश क्या है ? दो तीन चार आदि पाठ भङ्ग, लोकाकाश के प्रदेश, सब जीवों के आठ कर्मप्रकृतियाँ हैं, ज्ञानावरणीय के अनन्त अविभाग परिच्छेद. माठों कर्मों का पारस्परिक संबंध, जीव पुद्गल है या पुद्गल वाला ? सिद्धों तक यही प्रश्न और इसका विचार ।