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श्री जैन सिद्धान्त बोल समई, चौथा भाग.
ज्ञान आदि ज्ञानों के पर्यायों का अल्पबहुत्व |
(३) उ० - संख्यात जीविक, असंख्यात जीविक, अनन्त जीविक वनस्पति के भेद, जीव प्रदेशों से स्पृष्ट, अस्पृष्ट आदि का विचार | रत्न प्रभा यादि पृथ्वियों चरम प्रान्तवर्ती हैं या अचरम ? उत्तर के लिए श्रीपानया के चरमपद की भलामय । (४) उ० - पॉच क्रियाओं का वर्णन । श्रीपमवया के क्रियापद की भलामण ।
(५) उ० - सामायिक में स्थित श्रावक की स्त्री उसकी जाया कहलाती है या अजाया ? स्थूल प्राणातिपात के प्रत्याख्यान की विधि, प्रतीत प्राणातिपात यादि के प्रतिक्रमण के ४६ भांगे । श्राजीवक (गोशालक ) का सिद्धान्त, आजीविक के १२ श्रमणोपासकों के नाम | श्रावक के लिए त्याज्य इंगालकम्मे यदि पन्द्रह कर्मादान | देवलोकों के चार भेद । 1
( ६ ) उ०- तथारूप श्रमण माहण को प्रासुक और एपणीय आहार पानी देने से एकान्त निर्जरा होती है और गाढ कारण के अवसर पर अप्रासुक और अनेषणीय आहार पानी देने से पाप की अपेक्षा बहुत निर्जरा और निर्जरा की अपेक्षा अल्प पाप होता है तथा असंयती और श्रविरति को गुरुबुद्धि से किसी प्रकार का आहार पानी देने से एकान्त पाप कर्म होता है। जिस साधु का नाम लेकर भिक्षुक को आहार पानी दिया जाने वह उसी को ले जाकर देना चाहिए। आराधक और विराधक । निर्ग्रन्थ के समान निर्मन्थी (साध्वी) का भी आलापक । दीपक जलता है ' या ज्योत जलती है या ढकन इत्यादि प्रश्न । घर जलता है तो क्या भीत जलती है या टाटी १ जीव श्रदारिक आदि पाँच शरीरों से कितनी क्रिया कर सकता है। इसी प्रकार २४ दएडक में प्रश्न
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(७) उ० - अन्य यूथिक त्रिविध असंयत और त्रिविध अविरत हैं वे अदव आदि का ग्रहण करते हैं, पृथ्वी आदि की हिसा