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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
सातवाँ शतक (१)उ०-जीव के अनाहारी होने का समय, लोक, संस्थान, सामायिक में रहे हुए श्रमणोपासक श्रावक को ईर्यावही क्रिया लगती है या साम्परायिकी ? पृथ्वी को खोदने से त्रसकाय अथवा वनस्पति की हिसा होती है। तथारूप अमण, माहण और साधु को शुद्ध पाहारादि देने से जीव समाधि को प्राप्त करता है यावत् मुक्ति को प्राप्त करता है । कर्मरहित जीव की गति । दुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट (व्यात) होता है। उपयोग रहित चलते हुए अनगार को ईयर्यावही क्रिया लगती है या साम्परायिकी ? सदोष आहार पानी, निदोष आहार पानी, क्षेत्राविकान्तादि आहार पानी, अग्नि आदि शस्त्र परिणत आहार पानी आदि का निर्णय ।।
(२) उ० सर्व प्राणी, भूत, जीव, सच की हिंसा का पचक्खाण सुपञ्चक्खाण है या दुःपञ्चक्खाण ? मूलगुण पञ्चक्लाण, उत्तरगुण पच्चस्खाण इत्यादि का विस्तृत विवेचन ।
(३)उ०-वनस्पतिकाय अल्पाहारी और महाहारी, वनस्पतिकाय किस प्रकार आहार ग्रहण करती है ? अनन्तकाय वनस्पतिकाय के मेद, कृष्ण लेश्या वाले और नील लेश्या वाले नैरयिक के विषय में अल्पकर्म वाला और महाकर्म वाला आदि प्रश्न, इसी तरह २४ दण्डक में प्रश्न, नरक की वेदना निर्जरा है या नहीं? इसी प्रकार २४ दण्डक में प्रश्न निरयिकशाश्वत है या अशाश्वत इत्यादि प्रश्नोचर। .. (४)उ०-संसार समापन जीव के मेद आदि। श्री जीवाभिगम स्त्र की भलामण ।
(५) उ०-खेचर तिर्यश्च पञ्चेन्द्रिय के योनिसंग्रह विषयक, प्रश्न । उत्तर के लिए श्री जीवामिगम की भलामण ।
(६)उ०-नरयिक जीव कंब भायुबंध करता है ? उत्पन होने