________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल समह, चौथा भाग १४ कांग, राल, सण, सरसों आदि धान्य सात वर्ष तक बीजोत्पनि के । योग्य रहते हैं। एक मुहूर्त के३७७३उच्छ्वास । प्रावलिका,उच्छवास, निश्वास, पाण,स्तोक,लव, मुहूर्ग, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु,अयन, संवत्सर, युग, वर्षशत, वर्षसहस्र, वर्षशतसहस्र, पूर्वाङ्ग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, अटट, अवांग, अवव,हूहूकांग, हूहूक, उत्पलोग,उत्पल, पांग, पद्म, नलिनांग, नलिन,अर्थनुपूरांग, अर्थनुपर, अयुतांग,अयुत,प्रयुतांग,प्रयुत,नयुतांग, नयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका इत्यादि गणनीय काल का स्वरूप, पन्योपम, सागरोपम आदि उपमेय काल, भरतक्षेत्र का आकार, भरतक्षेत्र के मनुष्यों का स्वरूप आदि। .
(८) उ०-रत्नप्रभा से ईपन्प्राग्भारा तक ८ पृथ्वियों का' स्वरूप एवं विस्तृत वर्णन, पृथ्वियों के नीचे मेघ, बादर अग्निकाय,
आदि का प्रश्न, सौधर्म, ईशान आदि देवलोकों के नीचे मेघ आदि का प्रश्न । लवण समुद्र सम्बन्धी प्रश्न, उत्तर के लिए श्रीजीवामिगम की भलामण । द्वीप समुद्रों के नाम ।
(8) उ-जीव ज्ञानावरणीय कर्म का पन्ध करता हुआ साथ में कितनी अन्य कर्म प्रकृतियों का वध करता है ? उत्तर के लिए पनवणा के बन्धोह शक की भलामण । महर्दिक देव बाह्य पुद्गलों को लेकर किस रूप की विकुर्वणा कर सकता है ? विशुद्ध लेश्या वाले, भविशुद्ध लेश्या वाले देव के जानने और देखने विषयक बारह मङ्ग।
(१०)उ०-जीवों के सुख दुःखादि को कोई भी बाहर निकाल कर नहीं दिखला सकता। देव तीन चुटकी में जम्बूद्वीप की २१ प्रदक्षिणा कर सकता है। जीव के प्राण धारण करने विषयक प्रश्न । इसी तरह चौवीस दण्डक में प्रश्न । नैरयिकों का आहार, केवली और केवली की इन्द्रियाँ, केवली ज्ञान से ही देखते और जानते हैं।