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' श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला
ग्रहण । देवताओं के मेद और देवलोकों का वर्णन |
(१०) उ०- चन्द्रमा का विचार | पाँचवें शतक के प्रथम उद्दशे की भलामण।
छठा शतक (१) उ०-दस उद्देशों की नाम सूचक गाथा, महावेदना और महानिर्जरा आदि विचार । महावेदना और महानिर्जरा पर चौभङ्गी।
(२) उ०-श्राहार विषयक प्रश्न । उत्तर के लिए पनवणा के आहार उद्देशे की भलामण।
(३) उ०-चन के उदाहरण से महाकर्म और अन्यकर्म का विचार, पुद्गलों का चय, उपचय, विलसा और प्रयोगसा गति । वन और जीव की सादि सान्तता का विचार, कर्म और कर्मों की स्थिति । कौनसा जीव कितने कर्म वाँधता है । स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदी जीवों का अल्पबहुत्व।
(४) उ०-कोलादेश की अपेक्षा जीव संप्रदेश है या अप्रदेश इत्यादि भङ्ग।२४डएडक में प्रत्याख्यानीअप्रत्याख्यानी का विचार।
(५) उ०-तमस्काय का स्वरूप, स्थान, आकार, तमस्काय की लम्बाई चौड़ाई, तमस्काय के ग्राम, नगर, गृहादि का विचार मेष की उत्पत्ति, चन्द्र सूर्य सम्बन्धी विचार। तमस्काय के तेरह नाम । कृष्णराजियों के नाम, कृष्णराजियों की वक्तव्यता, पाठ कृप्यराजियों के बीच में आठ लोकान्तिक देवों के विमान ।
(६) उ०-रत्नप्रभा श्रादि सात पृथ्वियों के नाम, श्रावास । पाँच अनुत्तर विमान । मारणान्तिक समुद्घात का वर्णन ।
(७)उ०- शालि, जौ, गेहूँ इत्यादि धान कोठे में सुरक्षित रखे रहने पर कितने समय तक अंकुरोत्पत्ति के योग्य रहते हैं? कलाय, मसर, तिल, मूग, उड़द, कुलथ, चवला, तुवर, चना आदि धान्य पाँच वर्ष तक बीजोत्पत्ति के योग्य रहते हैं। असली, कुसुम, कौटूं,