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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
के सब लोकपालों की बिकुणा शक्ति का वर्णन, मौका नगरी, ईशानेन्द्र, तामली बालतपस्वी, पौर्यपुत्र प्रादि का अधिकार, शक्र - न्दू और ईशानेन्द्र के विमान, उनके श्रापस में होने वाले आलापसंलाप, मिलन, विवाद आदि का वर्णन, सनत्कुमारेन्द्र भन्य है या अभव्य ? इत्यादि प्रश्नोत्तर।
(२) उ०- चमरेन्द्र का सौधर्म देवलोक में गमन, वहाँ से भाग' कर भगवान महावीर स्वामी की शरण लेना, चमरेन्द्र पूर्वभव में पूरण नाम का बालतपस्वी था इत्यादि वर्णन !
(३) उ०-मंडितपुत्र अनगार का अधिकार, प्रारम्भी अवस्था तक जीव को मोक्ष नहीं, प्रमादी और अप्रमादी की कालस्थिति, अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा श्रादि पर्यों पर लवण समुद्र के घटने और बढ़ने का कारण ।
(४)उ०- अवधिज्ञानी अनगार के वैक्रिय समुद्घात का वर्णन तथा चौमङ्गी, लब्धिधारी मुनरािज वृक्ष, काष्ठ तथा कन्द, मूल और फल, पत्र, बीज आदि के देखने विषयक तीन चौमङ्गियाँ, बायुकाय स्त्री और पुरुषके श्राकारकी विकुर्वणा नहीं कर सकता किन्तु अनेक योजन तक पताका रूप विकुर्वणा कर सकता है। मेघ की विकुर्वणा शक्ति विषयक प्रश्न ! मर कर नरक में जाने समय कौनसी लेश्या होती है ? चौवीस दण्डक पर यही प्रश्न मावितात्मा अनगार घाहरी पुद्गलों को लेकर वैभार गिरि को उन्लंघन करने में समर्थ होता है या नहीं ? मायी विकुर्वणा करता है अमायी नहीं इत्यादि विचार ।
(५)3०- मावितात्मा अनगार द्वारा स्त्री, हाथी, घोड़ा धादि अनेक प्रकार की विकुर्वणा का विस्तृत विचार।।
(६) उ०-मायी मिथ्याष्टि भनगार की विकर्वणा, तथाभाव के स्थान में अन्यथा भावरूप देखना अर्थात् वाखारसी के