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श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, चौथा भाग १४३ स्त्रीगर्भ कितने समय तक रहता है। मनुष्य और निर्यश्च सम्बन्धी
और भी विचार । एक समय में कितने जीव पुत्ररूप से उत्पन्न होते ६१ धुनसेवी पुरुष को कौन सा असमय होता है ? तु गिया नगरी के श्रावकों का वर्णन, पाँच अभिगम, पूर्वकत संयम और तप के फल विषयक प्रश्न, राजगृह नगर के द्रह का वर्णन ।
(६) उ०-भाषा विषयक प्रश्न । उत्तर के लिये पावणा के ग्यारहवें मापापद का निर्देश।
(७) उ०-देवों के भेद और स्थान विषयक प्रश्न | उत्तर के लिए पनवणा के स्थान पद का निर्देश ।
(८) उ०- चमरेन्द्र और चमरेन्द्र की सभा का वर्णन ।
(६) उ०- समयक्षेत्र विषयक प्रश्न । उत्तर के लिए जीवाभिगम की भलामण।
(१०) उ०- पञ्चास्तिकाय का वर्णन, जीव उत्थान, कर्मबल, वीर्य से आत्मभाव को प्रकट करता है, लोकाकाश और अलो. काकाश में जीवादि हैं इत्यादि प्रश्न । दूसरे अस्तिकाय धर्मास्तिकाय के कितने माग को स्पर्श करते हैं।
तीसरा शतक (१) उद्देशा- दस उद्देशों के नाम, चमरेन्द्र की ऋद्धि और विकृर्वणा की शक्ति का वर्णन, चमरेन्द्र के सामानिक देव, बायस्त्रिंश, लोकपाल, अग्रमहिपी आदि की ऋद्धि का वर्णन, वलेन्द्र, वरणेन्द्र, ज्योतिषी देवों के इन्द्र, शक्रन्द्र की ऋद्धि, विकुर्वणा, सामानिक देव, आत्मरक्षक देव श्रादि की ऋद्धि का वर्णन, पाठ वर्षे श्रमण पर्याय का पालन कर इन्द्र के सामानिक देव बनने वाले तिष्यक अनगार का अधिकार, ईशानेन्द्र की वृद्धि एवं विकुर्वणाशक्ति का वर्णन, छ महीने श्रमण पयिय का पालन कर ईशानेन्द्र के सामानिक देव बनने वाले कुरुदत्त अनगार का वर्णन, सनत्कुमार इन्द्र से ऊपर