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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
मोहनीय कर्म के उदय से परलोक जाने योग्य कर्म बांधता है । Treat आदि सभी जीव अपने किये हुए कर्म भोगे बिना छुटकारा नहीं पा सकते । कर्मों के प्रदेशवन्ध, अनुभागबन्ध, वेदना आदि का वर्णन, पुद्गल की नित्यता, जीव तप, सयम, ब्रह्मचर्य और आठ प्रवचन माता का यथावत् पालन करने से सिद्ध, बुद्ध यावत् मुक्त हो जाता है । अधोवधि और परमाधोवधि के तथा केवली आदि के विषय में प्रश्नोत्तर |
(५) उ०- पृथ्वी (नारकी), नरकावास, असुर कुमार, असुर कुमारों के आवास, पृथ्वीकाय के आवास, ज्योतिषी, ज्योतिषी देवों के आवास, वैमानिक देव, वैमानिक देवों के आवास, नारकी जीवों की स्थिति, नैरयिक क्रोध, मान, माया, लोभ सहित हैं इत्यादि के २७ मांगे तथा ८० भांगे, चौबीस दंडक पर इसी तरह २७ भांगे, स्थिति, स्थान आदि का विचार ।
(६) उद्द ेशक - उदय होता हुआ। सूर्य जितनी दूर से दिखाई देता है, अस्त होता हुआ भी उतनी ही दूर से दिखाई देता है. । सूर्य तपता है, प्रकाशित होता है, स्पर्श करता है इत्यादि । लोकान्त लोकान्तको स्पर्श करता है और अलोकान्त लोकान्त को । द्वीप समुद्र का स्पर्श करता है और समुद्र द्वीप का । जीव प्राणातिपात 1 आदि क्रियाएं स्पृष्ट या अस्पृष्ट करता है ! रोहक अणगार के प्रश्नो'तर | लोक स्थिति पर मशक का दृष्टान्त, जीव और पुद्गलों के पारस्परिक सम्बन्ध के लिए नौका (नाव) का दृष्टान्त । सदा प्रमाणोपेत सूक्ष्म स्नेहकाय (एक प्रकार का पानी) गिरता है इत्यादि विचार ।
(७) उ०- नरक में उत्पन्न होता हुआ जीव क्या सर्वरूप से उत्पन्न होता है या देश से इत्यादि चौभङ्गी, इस प्रकार चौबीस दंडक पर विचार | तीनों काल की अपेक्षा चौचीस दंडक में