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श्री जैन सिद्धान्त बोल साह, चौथा भाग १३६ चारित्र, तप, संयम है वह इहभव सम्बन्धी, परभव सम्बन्धी या उभयभव सम्बन्धी है इत्यादि विषयक प्रश्न, असंवृत (जिसने आश्रवों को नहीं रोका है। साधु- और संवृत (आश्रवों को रोकने वाला) साधु, सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होता है या नहीं ? असंयत, अविरत, अप्रत्याख्यानी जीव मर कर देवलोक में उत्पन होता है या नहीं ? वायव्यन्तर देवताओं के विमान कैसे हैं ? इत्यादि प्रश्नोत्तर। ,
(२) उद्देशक-जीव स्वकृत कर्मों को भोगता है यापरकृत १२४ दंडक के विषय में पृथक् पृथक रूप से यही प्रश्न, जीव अपना बांधा हुआ आयुष्य भोगता है या नहीं? २४ दंडक के विषय में यही प्रश्न, सप नारकी जीवों का आहार, श्वासोच्छवास, शरीर, कर्म, वर्ण, लेश्या, वेदना, क्रिया, उत्पचि समय और प्रायु आदि समान हैया भिन्न भिन्न ? उत्पत्ति समय और आयु के विषय में चौमङ्गी। २४ दंडक पर आहार, लेश्या आदि चार बोल विषयक प्रश्न । उत्तर के लिए पनवणा के दूसरे उद्द'शे का निर्देश । संसार संचिट्ठणा, काल, जीव की अन्त क्रिया विषयक प्रश्न और उत्तर के लिए पनवणा के अन्त क्रिया पद का निर्देश (भलामण) । विराधक, अविराधक, संयती, असंयती आदि कौनसे देवलोक तक उत्पन्न हो सकते हैं ? असंझी की आयु के चार भेद इत्यादि का वर्णन है।
(३) उद्देशक-जीव कांक्षामोहनीय कर्म किस प्रकार बांधता और भोगता है ? वीतराग प्ररूपित तत्व सत्य एवं यथार्थ है इस प्रकार श्रद्धान करता हुआ जीव भगवान् की आज्ञा का पाराधक होता है । जीव किस निमित्त से मोहनीय कर्म वांघता है ? नारकी जीव काधामोहनीय कर्म गॉधता और वेदता है या नहीं? इत्यादि प्रश्न ।
(४) उद्देशक-कर्मों की प्रकृतियों के विषय में प्रश्न, उत्तर के लिए पनवखा के 'कम्मपडि' पद के प्रथम उद्देशे का निर्देश । जीव
।
इत्यादि प्रश्न ।