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श्री सेठिया जेन प्रन्थमाला
योजन अन्तर पर है।
सहस्रार कल्प में ६००० विमान हैं। रत्नप्रभा पृथ्वी में रत्नकाण्ड के ऊपरी अन्त से पुलक कांड का अधोभाग ७००० योजन अन्तर पर है।
हरिवास और रम्यकवासों का विस्तार कुछ अधिक ८००० योजन है।
दक्षिणाई भरतक्षेत्र की जीवा १००० योजन लम्बी है। मेरु पर्वत पृथ्वी पर १०००० विष्कम्भ वाला है। लवणसमुद्र का चक्राकार विष्कम्भ २ लाख योजन है। पावनाथ भगवान् के पास ३ लाख २७ हजार उत्कृष्ट श्राविका - सम्पदाथी।
धातकोखण्ड द्वीप का गोल घेरा ४ लाख योजन है।
लवणसमुद्र के पूर्वी अन्त से पश्चिमी अन्त का अन्तर ५ लाख योजन है।
भरत चक्रवर्ती ६ लाख पूर्व राज्य करने के बाद साधु हुए। जम्बूद्वीप की पूर्वीय वेदिका के अन्त से घातकोखण्ड का पश्चिमी अन्त ७ लाख योजन अन्तर पर है। माहेन्द्रकल्प में ८ लाख विमान हैं।
अजितनाथ भगवान् के पास कुछ अधिक 8 हजार अवधिज्ञानी थे।
पुरुषसिंह वासुदेव दस लाख वर्ष की पूर्णायु प्राप्त कर पाँची नरक में उत्पन्न हुए।
भगवान महावीर छठे पूर्वभव में पोट्टिल अनगार के रूप में एक करोड़ वर्ष की साधुपर्याय पाल कर सहसार कल्य के सर्वार्थसिद्ध . विमान में उत्पन्न हुए।
ऋषभदेव भगवान् और महावीर भगवान के बीच एक कोड़ा