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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग . १३५ । आनत, प्राणत, पारण और अच्युत कल्पों में विमान १०० योजन ऊंचे हैं। निषधकूट के ऊपरी शिखर से निपध वर्षघर का समतल भूभाग १०० योजन है। इसी तरह नीलवंत कूट का जानना चाहिए । विमलवाहन कुलकर की ऊंचाई १०० धनुष की थी। रत्न प्रभा के समतल भाग से तारामंडल ६०० योजन ऊंचा है। निपध और नीलवंत के जगरी शिखर से रत्नप्रभा के पहले काण्ड का मध्य भाग १०० योजन अन्तर पर है।।
वेपक विमानों की ऊंचाई १००० योजन है । यमक पर्वतों की ऊंचाई १००० योजन तथा उद्वेध १००० कोस है। मूल में लम्बाई चौड़ाई १००० योजन है। चित्र और विचित्रकूट भी इसी तरह समझने चाहिएं। प्रत्येक वर्तुल वैताट्य पति की ऊंचाई १००० योजन, उद्वर १००० कोस तथा मूल में लम्बाई चौड़ाई १००० योजा है। वक्षस्कार कूटी को छोड़ कर सभी हरि और हरिसह कूट १००० योजन ऊंचे तथा मून में १००० योजन विष्कम्भ वाले हैं। नन्दन कूट को छोड़ कर सभी वलकूट भी इसी तरह जानने चाहिएं । अरिष्टनेमि भगवान् १००० वर्ष की पूर्णायु प्राप्त कर सिद्ध हुए। पवनाथ भगवान् के पास १००० केवली थे। पार्श्वनाथ भगवान् के १००० शिष्य सिद्ध हुए। पद्म द्रह और पुण्डरीक द्रह १००० योजन विस्तार वाले हैं। ।
अनुत्तरोववाई देवों के विमान ११०० योजन ऊंचे हैं। पार्व नाथ भगवान के पास ११०० चैक्रिय लधिधारी थे।
महापन और महापुडकरीक द्रह २००० योजन विस्तार वाले हैं। रत्नप्रभा में वज्रकांड के ऊपरी भाग से लोहिताक्ष कांड का अधोभाग ३००० योजन है। तिगिच्छ और केसरी द्रह ४००० योजन विस्तार वाले हैं। मेरु का मध्य भाग रुचक नाभि से प्रत्येक दिशा में ५०००