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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग
कोड़ी सागरोपम का अन्तर है
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१२ गणिपिटक अर्थात् १२ अङ्ग और उनके विषयों का निरू पण | दृष्टिवाद के विवेचन में १४ पूर्वो का वर्णन ।
दो राशियाँ तथा उनके भेद । सात नरक तथा देवों का वर्णन | भवनपति आदि देवों के श्रावास, नरकों के दुःख, अवगाहना, स्थिति यादि का निरूपण ।
पॉच शरीर । प्रत्येक शरीर के भेद तथा अवगाहना । श्रवधिज्ञान के भेद | नरकों में वेदना । छः लेश्याएं । नारकी जीवों का श्राहार। श्रायुबन्ध के छः भेद | सभी गतियों का विरहकाल । I
छः संघयण । नारकी, तिर्यञ्च और देवों के संघयण । छः संठाण । नारकी आदि के संठाय । तीन वेद । चारों गतियों में वेद
गत उत्सर्पिणी के ७ कुलकर । गत अवसर्पिणी के १० कुलकर । वर्तमान अवसर्पिणी के ७ कुलकर। सात वर्तमान कुलकरों की भार्याएं। वर्तमान अवसर्पिणी के २४ तीर्थङ्करों के पिता । २४ तीर्थङ्करों की माताएं | २४ तीर्थङ्कर । इनके पूर्वभव के नाम । तीर्थङ्करों की २४ पालकियों तथा उनका वर्णन | तीर्थङ्करों के निष्क्रमण (संसारत्यांग) का वर्णन | तीर्थङ्करों की पहली मिक्षाओं का वर्णन । २४ चैत्यवृक्षों का वर्णन । तीर्थङ्करों के प्रथम शिष्य और शिष्याएं । 1 १२ चक्रवर्ती, उनके माता पिता तथा स्त्री रत्न ।
६ बलदेव तथा & वासुदेवों के माता पिता, उनका स्वरूप तथा नाम, पूर्वभव के नाम, वासुदेवों के पूर्वभव के धर्माचार्य, नियाया करने के स्थान तथा कारण, नौ प्रतिवासुदेव, वासुदेवों की गति, बलदेवों की गति ।
ऐरावत में इस अवसर्पिणी के २४ तीर्थङ्कर । भरतक्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणो के ७ कुलकर । ऐरावत में आगामी उत्सर्पिणी के १० कुलकर । भरत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी के २४ तीर्थङ्कर । उन