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'श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला आचारांग सूत्र के कुल ८५ उद्देशे हैं। धातकीखंड और पुष्करार्द्ध के मेरु पर्वतों का तथा रुचक नाम के मांडलिक पर्वत का सर्वाङ्ग ८५ हजार योजन है । नन्दन वन के प्राधोमाग से सौगन्धिक कांड का अधोभाग ८५ सौ योजन अन्तर पर है। । . सुविधिनाथ भगवान के ८६ गणधर थे। सुपार्श्वनाथ भगपान के ८६०० वादी थे। दूसरी पृथ्वी के मध्यभाग से घनोदधि का अधोभाग ८६००० योजन अन्तर पर है।
मेरु पर्वत के पूर्वीय अन्त से गोस्तूम आवास पर्वतका पश्चिमी अन्त ८७००० योजन अन्तर पर है, इसी तरह मेरु पर्वत के दक्षिणी अन्त से उदकभास नामक पर्वत का उत्तरी अन्त, मेरु पर्वत के पश्चिमी अन्त से शंख नामक पर्वत का पूर्वीय अन्त, मेरु के उचरी अन्त से उदकसीम पर्वत का दक्षिणी अन्त ८७००० योजन अन्तर पर है। ज्ञानावरणीय और अन्तराय को छोड़ कर वाकी छः कर्मों की उत्तरप्रकृतियाँ मिला कर ८७ हैं। महाहिमवंत कूट और रुक्मिकूट के ऊपरी भाग से सौगन्धिक कांड का अधोभाग ८७०० योजन है। · प्रत्येक चन्द्र और सूर्य के ८८ महाग्रहों का परिवार है । दृष्टि वाद के ८८ सूत्र हैं। मेरु के पूर्वीय अन्त से गोस्तूम का पूर्वीय अन्तं का अन्तर ८८ हजार योजन है । इसी तरह चारों दिशाओं में समझना चाहिए । दक्षिणायान में आया हुआ सूर्य ४४३ मंडल में मुहूर्त का माग दिन को कम कर देता है और उतनी ही रात को बढ़ा देता है। उत्तरायण में आने पर उतना ही दिन को बढ़ा देता है और रात को घटा देता है।
भगवान् ऋषभदेव सुषमदुषमा आरे के और भगवान महावीर दुषमसुषमा पारे के ८४ पन चाकी रहने पर सिद्ध हुए। हरिषण चक्रवर्ती ने ८१०० वर्षे राज्य किया । भगवान् शान्तिनाथ के अधीन ८६००० आर्याएं थीं।
शीतलनाथ भगवान की अवगाहना १० धनुष की थी। अजित