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श्री जैन सिद्धान्त बो ल संग्रह, चौथा भाग -- १३१ नाथ और शान्तिनाथ भगवान् के 8 गणधर थे। स्वयंभू वासुदेव १० वर्ष तक देश विजय करते रहे सभी गोल बैतादय पर्वतों के ऊपरी शिखर से लेकर सौगन्धिक कांड का अधोमाग 8००० योजन अन्तर पर है।
दूसरे की वैतावत्य करने की ६१ पडिमाएं हैं। कालोदधि समुद्र की परिधि कुछ अधिक ६१ लाख योजन है । कुन्थुनाथ भगवान् के साथ ६१०१ अवधिज्ञानी थे। भायु और गोत्र कर्म को छोड़ कर बाकी छ कर्मों की कुल ६१ उत्तरप्रकृतियाँ हैं। .
१२ पडिमाएं, स्थविर इन्द्रभूति १२ वर्ष की पूर्णायु प्राप्त कर सिद्ध हुए । मेरु पर्वत के मध्यभाग से गोस्तूम आदि चारों आवास पर्वतों का १२००० योजन अन्तर हैं।
चन्द्रप्रम स्वामी के १३ गण तथा १३ गणधर थे। शान्तिनाथ भगवान् के पास १३ सौ पूर्वधर थे। सूर्य के १३३ मंडल में प्रवेश करते तथा निकलते समय दिन और रात परावर होते हैं।
निषध और नीलवान् पर्वतों की जीवाएं ६४१५६४ योजन लम्बी है। अजितनाथ भगवान् के १४०० अवधिज्ञानी थे।
सुपार्श्वनाथ भगवान् के ६५ गण तथा ६५ गणधर थे। जम्बूद्वीप की सीमा से १५००० योजन लवण समुद्र में चार महापावालकलश हैं। लवणसमुद्र के प्रत्येक ओर १५ प्रदेशों के बाद एक प्रदेश ऊंचाई कम होती जाती है । कुन्थुनाथ भगवान ६५००० - वर्ष आयु पाल कर सिद्ध हुए । स्थविर मौर्यपुत्र ६५ वर्ष की आयु प्राप्त करके सिद्ध हुए।
प्रत्येक चक्रवर्ती के ९६ करोड़ गाँव होते हैं। वायुकुमारों के कुल ६६ लाख आवास हैं । कोस आदि नापने के लिए व्यावहारिक दंड ६६ अंगुल का होता है। इसी तरह धनुप, नालिका (लाठी),जूना,समूल आदि भी १६ भंगुल के होते हैं। सूर्य के सा