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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग १२६ सूत्र में ८१ महायुग्म शत हैं यानी अन्तर्शतक हैं अर्थात् पैंतीसवें, छत्तीसवें, सैंतीसवें, अड़तीसवें, और उनचालीसवें शतक में बारह बारह अन्तर्शतक हैं। ये ६० अन्तर्शतक हुए । चालीसवें शतक में २१ अन्तर्शतक है। ये कुल मिला कर ८१ महायुग्म अन्तशतक है।
सूर्य १८२ मण्डलों को दो चार संक्रमण करता हुआ गति करता है। श्रमण भगवान् महावीर का ८२ दिन के बाद दूसरे गर्भ में संक्रमण हुआ था। महाहिमवन्त और रुक्मी पर्वत ऊपरी भागों से सौगन्धिक कांड के नीचे तक ८२ सौ योजन का अन्तर है।
भगवान् महावीर का ८३ वीं रात्रि में गर्म परिवर्तन हुआ। शीतलनाथ भगवान् के ८३ गण और ८३ गणधर थे। मंडितपुत्र स्थविर ८३ वर्ष की आयु पूरी करके सिद्ध हुए। अपभदेव भगवान् ३ लाख पूर्व गृहस्थ रह कर दीक्षित हुए । भरत चक्रवर्ती ८३ लाख पूर्व गृहस्थ रह कर सर्वज्ञ हुए। ___ कुल नरकावास ८४ लाख हैं। ऋषभदेव भगवान्, वाली और सुन्दरी की पूर्ण आयु ८४ लाख पूर्व थी। श्रेयांसनाथ भगवान् ८४ लाख वर्ष की पूर्णायु प्राप्त कर सिद्ध हुए ! त्रिपृष्ठ वासुदेव ८४ लाख वर्ष आयु पूरी करके अप्रतिष्ठान नरक में उत्पन हुआ। शक देवेन्द्र के ८४ हजार सामानिक देव है। जम्बूद्वीप से बाहर के मेरु पर्वतों की ऊंचाई ८४ हजार योजन है। सभी अंजन पर्वतों की ऊंचाई ८४ हजार योजन है । हरिवास और रम्यकवास की जीवाओं का धनु:पृष्ठ भाग ८४०१६ योजन है । पङ्कबहुल काण्ड की मोटाई ८४ हजार योजन है । भगवती सूत्र में ८४ हजार पद हैं। ८४ लाख नागकुमारों के आवास | ८४ हजार प्रकीर्णक अन्यों की संख्या है। ८४ लाख जीवों की योनियाँ हैं। पूर्वाङ्ग से लेकर शीर्षप्रहेलिका संख्या तक उत्तरोतर संख्या ८४ गुणी होती जाती है। भगवान् ऋषभदेव के पास ८४ हजार साधु थे। स्व विमान ८४६७०२३ हैं।