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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
सुविधिनाथ भगवान के शासन में ७५ सौ केवली हुए । शीतलनाथ भगवान् ७५ हजार पूर्व गृहस्थ रह कर दीक्षित हुए। शान्तिनाथ भगवान् ७५ हजार वर्षे गृहस्थ रह कर दीक्षित हुए। विद्युत्कुमारों के ७६ लाख आवास हैं।
भरत चक्रवर्ती ७७ लाख पूर्व युवराज रहने के बाद सिंहासन पर , बैठे। अंगवंशीय ७७ राजाओं ने दीक्षा ली। गर्दतोय और तुषित दोनों के मिला कर ७७ हजार देवों का परिवार है। एक मुहर्त में ७७ लव होते हैं।
शक्र देवेन्द्र का वैश्रमण नामक दिवसाल ७८ लाख सुवणकुमार और द्वीपकुमरों के आवासों पर शासन करता है। अकम्पित महास्थविर ७८ वर्ष की आयु पूरी करके सिद्ध हुए। सूय के दक्षिणायन में जाने पर दिन मुहूर्त का वा भाग प्रतिदिन घटता जाता है और उतनी ही रात्रि पढ़ती जाती है। उत्तरायण होने पर उतना ही दिन बढ़ता और रात्रि घटती है। ३६ दिन में ७८ भाग घट जाता है।
बहवामुख, केतुक, यूप और ईश्वर नामक पातालकलश और रत्न-' प्रभा के अन्तिम भाग का अन्तर ७६ हजार योजन है। छठी पृथ्वी के मध्यभाग से घनोदधि का अन्तिम भाग७६ हजार योजन है जम्बूद्वीप के द्वारों में परस्पर कुछ अधिक ७६ हजार योजन का अन्तर है।
श्रेयांसनाथ भगवान्, त्रिपृष्ट वासुदेव और अचल बलदेव की अवगाहना ८० धनुष थी। त्रिपुष्ट वासुदेव ने ८० लाख वर्ष राज्य किया। रत्नप्रभा के अब्बहुल काण्ड की मोटाई ८० हजार योजन है। ईशानदेवेन्द्र के ८० हजार सामानिक देव हैं। जम्बूद्वीप में १५० योजन अवगाहन कर सूर्य उत्तर दिशा में उदित होता है।
नवनवमिका नामक भिक्षुपडिमा ८१ दिन में पूरी होती है । कुन्थु
* गर्दतीय और तुषित इन दोनों देवों की सम्मिलित परिवार संख्या के विषय में समवायाग ओर भगवती सूत्रमें पाठ इस प्रकार है:गहतोय तुसियाण देवाण सत्तहत्तरि देवसहस्सपरिवारा परबत्ता।
(समावायाग सूत्र ७७ वा समाषाय) गद्दतीयतुसियाण देवाणं सत्त देवा सत्तदेवसहस्सा पएणत्ता ।
(भगवती सत्र शतक ६ उद्देशक ५ सूत्र २४३)