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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग
मल्लिनाथ भगवान् ५५ हजार वर्ष की परमायु प्राप्त कर सिद्ध हुए, मन्दराचल के परिचम के चरमांत से विजय आदि द्वारों के पश्चिम के चरमान्त का अन्तर ५५ हजार योजन है, भगवान् महावीर अन्तिम रात्रि में ५५ अध्ययन वाला सुखविपाक और ५५ अध्ययन वाला दुःखविपाक पाठ कर सिद्ध हुए, पहली और दूसरी नरक में ५५ लाख नरफावास, दर्शनावरणीय, नाम और आयु तीन कर्मों की उत्तरप्रकृतियाँ ५५ हैं।
जम्बूद्वीप में ५६ नक्षत्र, विमलनाथ भगवान के ५६ गणधर, आचारांग की चूलिका छोड़ कर तीन गणिपिटकों में ५७ अध्ययन हैं, गोस्तूम पर्वत के पूर्व के चरमान्त से बड़वामुख नामक पाताल कलश के मध्यभाग तक का अन्तर ५७ हजार योजन, मल्लिनाथ भगवान के शासन में ५७ सौ.मनापर्ययज्ञानी थे, महाहिमस्त और रुक्मी पर्वतों की जीवा का धनु:पृष्ट ५७२०३११ योजन है।
पहली, दूसरी और पांचवीं पृथ्वियों में ५८ लाख नरकावास हैं, ज्ञानावरणीय, वेदनीय, आयुष्य, नाम और अन्तराय इन पांचों कर्मों की ५८ उत्तरप्रकृतियाँ हैं, गोस्तूम पर्वत के पश्चिम के. चरमांत से बड़वामुख नामक पाताल कलश के मध्य भाग तक का अन्तर ५८ हजार योजन है।
चंद्र संवत्सर की रफ ऋतु ५६ रात दिन की है, सम्भवनाथ भगवान् ५६ लाख पूर्व गृहस्थ में रहकर दीक्षित हुए, मल्लिनाथ भगवान् के शासन में ५8 सौ अवधिज्ञानी थे।
६० मुहूतों में सूर्य एक मण्डल पूरा करता है, लवण समुद्र में ६० हजार नाग देवता समुद्रवेला की रक्षा करते है, विमलनाथ भगगन की अवगाहना ६० धनुष थी, बलीन्द्र तथा ब्रह्म देवेन्द्र के ६० हजार सामानिक देवह,सौधर्म और ईशान दोनोंकल्पों में ६० लाख विमान हैं।
पाँच साल में ६१ ऋतुमास होते हैं,मेरु पर्वत का पहला काण्ड ६१ हजार योजन ऊंचा है, चन्द्रमण्डल और सूर्यमण्डल का समांश योजन का ६१ वॉ भाग है।