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१२६ . श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
पाँच साल के युग में ६२ पूर्णिमाएं तथा ६२ अमावस्याएं होती हैं, वासुपूज्य भगवान के ६२ गणधर थे, शुक्लपक्ष का चन्द्र प्रतिदिन ६२ वी भाग बढ़ता है और कृष्णपक्ष का घटता है, सौधर्म
और ईशान कल्पों के पहले पाथड़े में पहली आवली की प्रत्येक दिशा में ६२ विमान है सभी चैमानिकों में ६२ पाथड़े हैं।
भगवान् ऋषभनाथ ६३ लाख पूर्व गृहस्थ रहे, हरिवास और रम्यकवास युगलियों का उनके माता पिता ६३ दिन (जन्म दिन को छोड़ कर) पालन करते हैं। निषध और नीलवान पर्वत पर ६३ सूर्योदय के स्थान हैं।
अपिया मिथुपडिमा ६४ दिनरात तथा १८० मिक्षाओं में पूरी होती है, असुरकुमारों के ६४ लाख आवास हैं, चमरेन्द्र के ६४ हजार सामानिक देव हैं. प्रत्येक दधिमुख पर्वत ६४ हजार योजन चौड़ाई तथा ऊंचाई वाला है, सौधर्म, ईशान और ब्रह्मलोक तीन कल्पों में मिला कर ६४ लाख विमान हैं। प्रत्येक चक्रवर्ती के पास ६४ लड़ियों वाला महामूल्य मोतियों का हार होता है।
जम्बूद्वीप में ६५ सूर्य मण्डल, मौर्यपुत्र नामक सातवें गणधर ६५ वर्ष गृहस्थ रहे, सौधर्मावतंसक विमान की प्रत्येक बाहु पर ६५ मझले भौम (महल) है। __ मनुष्य क्षेत्र के दक्षिणार्द्ध और उत्तरार्द्ध रूप प्रत्येक भाग में ६६ सूर्य तथा ६६ चन्द्र हैं। श्रेयांसनाथ भगवान् के ६६ गणधर थे। मतिज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति ६६ सागरोपम नामेरी है। ___ पाँच साल में ६७ नक्षत्रमास होते हैं, हैमवत और हैरण्यवत की प्रत्येक बाहु ६७५५ क्योजन लम्बी है, मेरु पर्वत के पूर्व के चरमांत से गौतम द्वीप के पूर्व के चरमान्त का अन्तर ६७ हजार योजन है। सभी नक्षत्रों की क्षेत्र सीमा का समांश योजन का ६७ वॉ भाग है। ' धातकी खंड द्वीप में ६८ चक्रवर्तीविजय , ६८ राजधानियाँ हैं, ६८ अरिहन्त, ६८ चक्रवर्ती, ६८ बलदेव और इ८ वासुदेव होते