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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला धर्मनाथ भगवान् के ४८ गण तथा ४८ गणधर थे सूर्यमण्डल का विष्कम्भ योजन है।
सप्तसप्तमिका मिनुपडिमा ४६ दिन में पूरी होती है, देवकुरु और उत्तरकुरु में युगलिए ४६ दिन में जवान होजाते हैं, तेइन्दिय जीवों की उत्कृष्ट स्थिति ४६ दिन है।
मुनिसुव्रत भगवान् के ५० हजार आर्यिकाएं थीं, अनन्तनाथ भगवान् तथा पुरुषोत्तम वासुदेव की अवगाहना ५० धनुष थी, दीर्घताढ्य पर्वतों की चौड़ाई मूल में ५० योजन है, लान्तककल्प में ५० हजार विमान है, ५० योजन लम्बी गुफाएं कंचन पर्वतों के शिखर ५० योजन चौड़े हैं। __ आचारांगप्रथम श्रुतस्कन्ध में५१ उद्देशे हैं,चमरेन्द्र और वलीन्द्र की सभा में ५१ सौ खम्भे हैं, सुप्रभ वलदेव ५१ लाख वर्षों की परमायु प्राप्त करके सिद्ध हुए, दर्शनावरणीय और नाम कर्म की मिलाकर ५१ उत्तरप्रकतियाँ हैं।
मोहनीय कर्म के ५२ नाम, पूर्व लवण समुद में गोस्तूभ पर्वत के पूर्व के चरमान्त से बड़वामुख महापाताल कलश के पश्चिम के चरमान्त के बीच में ५२ हजार योजन का अन्तर है। ज्ञानावरणीय नाम और अन्तराय की मिलाकर ५२प्रकृतियाँ है,सौधर्म,सनत्कुमार और माहेन्द्र कम्प में मिलाकर ५२ लाख विमान हैं।
देवकुरु और उत्तरकुरु कीजीवाएं कुछ अधिक ५३ हजार योजन लम्बी हैं, महाहिमवंत और रुक्मी पर्वत की जीवाएं ५३६३१६ योजन लम्बी हैं. भगवान महावीर के शासन में एक साल की दीक्षा पर्याय वाले ५३ श्मनगार पाँच अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए, सम्मृञ्छिम उरपरिसर्प की उत्कृष्ट स्थिति ५३ हजार वर्ष है।
५४उत्तम पुरुप,अरिष्टनेमि भगवान् ५४दिन छमस्थ पर्याय का पालन कर सिद्ध हुए. भगवान महावीर ने एक ही आसन से बैठे हुए ५४ प्रश्नों का उत्तर दिया अनन्तनाथ भगवान् के ५४ गणधर थे।