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श्री सेठिया जैन अन्यमाला
तथा ४२ सूर्य हैं, सम्मूछिम सुजपरिसर्प की उत्कृष्ट आयु ४२ हजार वर्ष है, नामकर्म की ४२ प्रकृतियाँ, लवण समुद्र में ४२ हजार नाग देवता जम्बूद्वीप के तर्फ की पानी की वेला को रोकते हैं। महालयाविमान प्रविभक्ति के दूसरे वर्ग में ४२ उद्देशे हैं, अवसर्पिणी के पाँचवें और छठे आरे मिला कर तथा उत्सर्पिणी के पहले और दूसरे आरे मिला कर ४२ हजार वर्ष के हैं।
कर्मविपाक के ४३ अध्ययन, पहली,चौथी और पाँचवीं पृथ्वी में ४३ लाख नरकावास हैं, जम्बूद्वीप की जगती के पूर्व के चरमान्त से गोस्तूम पर्वत के पूर्व के चरमान्त का अन्तर ४३ हजार योजन है, महालयाविमान प्रविभक्ति के तीसरे वर्ग में ४३लह शे हैं
४४ अध्ययन ऋषिभापित हैं, विमलनाथ भगवान् के पाटानुपाट ४४ पुरुष सिद्ध हुए, धरणेन्द्र के अधीन ४४ लाख मवनपतियों के आवास हैं, महालयाविमान प्रविभक्ति के चौथे वर्ग में ४४ उद्दशे हैं। . मनुष्य क्षेत्र, सीमन्तक नरक तथा ईत्याग्भारा पृथ्वी की४५ लाख योजन लम्बाई चौड़ाई है, धर्मनाथ भगवान् की अवगाहना ४५ धनुष थी, मेरुपर्वत के चारों तरफ लवण समुद्र की परिधि का ४५ हजार योजन अन्तर है, छः नक्षत्रों का चन्द्र के साथ४५ मुहूर्त योग होता है, महालयाविमान प्रविभक्ति के पांचवें वर्ग में ४५ उद्देशे हैं।
'दृष्टिवाद में ४६ मातृकापद हैं, ब्राह्मी लिपि में ४६अक्षर हैं, प्रभजन नामक वायुकुमारेन्द्र के अधीन ४६ लाख भवनावास हैं, सूर्य का सर्वाम्यन्तर मण्डलचार होने पर ४७२६३६योजन चतुःस्पर्शगति परिमाण होता है, अग्निभूति अनगार ने४७ वर्षगृहस्थ में रह कर दीक्षा ली।
प्रत्येक चक्रवर्ती के राज्य में ४८ हजार पत्तन (नगर) होते हैं,