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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भान
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और पासोज मासज में ३६ अंगुल की पोरिसी होती है। . '
कुन्थुनाथ भगवान के ३७ गण और गणधर, हैमवत और हैरएयवत पर्वतों की जीवा कुछ कम ३७६७४१ईयोजन है, विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित राजधानियों के प्रकार ३७ योजन ऊँचे हैं, क्षुद्रविमान प्रविभक्ति के प्रथम वर्ग में ३७ उद्देशे हैं, कार्तिक कृष्ण सप्तमी को पोरिसी की छाया ३७ अंगुल होती है।
पार्श्वनाथ भगवान की ३८ हजार आर्याएं थीं, हैमवत और हैरण्यवत की जीवाओं का धनुःपृष्ठ कुछ कम ३८७४०१२ योजन है, अस्ताचल पर्वत का दूसरा कांड ३८ हजार योजन ऊँचा है, क्षुद्रविमान प्रविभक्ति के दूसरे वर्ग में ३८ उद्देशे हैं।
नमिनाथ भगवान् के शासन में ३६ सौ अवधिज्ञानी थे,३६ कुलपर्वत, दूसरी, चौथी, पाँचवीं, छठी और सातवीं नरक में ३९ लाख नरकावास हैं, ज्ञानावरणीय, मोहनीय, गोत्र और श्रायुष्य इन चार कर्मों की ३६ प्रकृतियाँ हैं। • अरिष्टनेमी भगवान के ४० हजार आर्यिकाएं थीं, मन्दर पर्वत की चूलिका ४० योजन ऊँची है, शान्तिनाथ भगवान की अवगाहना ४० धनुष है, भूतानन्द नामक नागराज के राज्य में ४० लाख भवनपतियों के आवास हैं, क्षुद्रविमान प्रविभक्ति के तीसरे वर्ग में ४० उद्देशे हैं, फाल्गुन और कार्तिक की पूर्णिमा कोष्ट. अंगुल की पोरिसी होती है, महाशुक्र कल्प में ४०हजार विमान हैं।
नमिनाथ भगवान् के शासन में ४१ हजार आर्यिकाएं थीं,चार पृथ्वियों में ४१ लाख नरकावास है, महालया विमान प्रविभक्ति के पहले वर्ग में ४१ उद्देशे हैं।
श्रमण भगवान् महावीर कुछ अधिक ४२ वर्ष दीक्षापर्याय पाल कर सिद्ध हुए, जम्बूद्वीप की वाह्य परिधि से गोस्तूभ नामक पर्वत का ४२ हजार योजन अन्तर है, कालोद समुद्र में ४२ चन्द्र