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श्री सेठिया जैन भन्थम्पला कोड़ी सागरोपम का होता है, २० भन्योपम और २० सामसेपमा की स्थिति वाले देव और नारकी जीव ।।
२१ शवल दोष, आठवें निवृत्ति-नादर नामक गुणस्थान में रहने वाले जीव में विद्यमान मोहनीय की २१ प्रकृतियाँ, २१हजार वर्ष वाले आरे, २१ पल्योपम तथा २१ सागरोपम की स्थिति वाले देव तथा नारकी जोव।
२२परिषह, दृष्टिवाद नामक १२ ३ अंग में भिन्न मिन विषयों को लेकर बाईस वाईस सूत्र, २२ प्रकार का पुद्गल परिणाम, २२ 'पन्योपम तथा २२ सागरोपम की स्थिति वाले देव तथा नारकी जीव ।
सूयगडांग सूत्र के कुल २३अध्ययन, २३वीथङ्करों को सूर्योदय के समय केवलज्ञान हुआ, २३तीर्थङ्कर पूर्वभव में ग्यारह अंगों के ज्ञान वाले थे, २३ तीर्थङ्कर पूर्वभव में माण्डलिक राजा थे, २३ पन्योपम तथा सागरोपम की आयु वाले देव तथा नारकी जीव । ___ २४ देवाधिदेव तीर्थङ्कर,जम्बूद्वीप में लघुहिमवान और शिखरी पर्वतों की ज्या २४६३२६.योजन झामेरी है, २४देवस्थान इन्द्र से युक्त हैं, सूर्य के उत्तरायण में होने पर पोरिसी २४ अंगुल की होती है, गंगो और सिन्धु महानदियों का पाट कुछ अधिक २४ कोस विस्तार वाला है, रक्षा और रक्तवती महा नदियों का विस्तार भी कुछ अधिक २४ कोस है, २४ पन्योपम तथा २४ सागरोपम की स्थिति वाले देव और नारकी जीव।
२५ भावनाए, मल्लिनाथ भगवान की अवगाहना २५ धनुष थी, दीर्घवैताट्य पर्वतों की ऊँचाई २५ योजन है.और वे २५ गयूति (कोस) पृथ्वी में धंसे हुए हैं, दूसरी पृथ्वी शर्कराप्रमा में २५ लाख नरकावास हैं,चलिका सहित आचारांग सूत्र के २५ अध्ययन हैं, संक्लिष्ट परिणाम वाला अपर्याप्त मिथ्यादृष्टि विकलेन्द्रिय नाम कर्म की २५ प्रकृतियॉ वॉधता है, गंगा, सिन्धु, रवा और