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श्री जैन सिद्धान्त बोलसंग्रह, चौथा भाग १२० रक्तवती नदियाँ २५ कोस की चौड़ाई वाली होकर अपने अपने कुण्ड में गिरती हैं, लोकविन्दुसार नामक चौदहवें पूर्व मै २५वस्तु हैं, २५सागरोपम तथा २५पन्योपम की स्थिति वाले देव और नारकीजीव।
दशाश्र तस्कन्ध,व्यवहार और बृहक्कल्प सूत्र तीनों के मिला कर २६उद्देशे हैं, अभवी जीवों के मोहनीय कर्म की २६प्रकृतियों के काश सत्ता में रहते हैं । २६ सागरोपम तथा २६ पल्योपम स्थिति वाले देव तथा नारकी जीव। ___ साधु के २७ गुण, जम्बूद्वीप में अभिजत् नक्षत्र को छोड़कर चाकी २७ नक्षत्रों से व्यवहार होता है, नक्षत्र मास सत्ताईस दिन रात का होता है, सौधर्म और ईशानकल्प में विमानों का बाहन्य २७सौ योजन है,वेदकसम्यक्त्व के वन्ध से निवर्तने वाले जीव के मोहनीय कर्म की २७ प्रकृतियाँ सत्ता में रहती हैं, श्रावण शुक्ला सप्तमी को पौरिसी २७ अंगुल की होती है, २७ पल्यापम तथा २७सागरोपम की स्थिति वाले देव और नारकी जीव।।
२८आचारकल्प,मन्यजीवों के मोहनीय कर्म की २८प्रकतियाँ सत्ता में रहती हैं, मतिज्ञान के २८ मेद, ईशानकल्प में २८ लाख विमान हैं, देवगति का बन्ध होते समय जीव नाम कर्म की २८ प्रकृतियाँ घाँधता है, नारक जीव भी २८ प्रकृतियाँ वाँधते हैं, २८ पल्योपम तथा २८सागरोपम की स्थिति वाले देव और नारकी जीव ।
२६ पापभुतप्रसंग, २६ दिन रात वाले महीने, चन्द्रमास में २६ दिन होते हैं, शुभपरिणामों वाला सम्यग्दृष्टि भव्य जीव २६ प्रकृतियाँ बाँधता है, २६ पल्योपम तथा २६ सागरोपम की स्थिति वाले देव और नारकी जीव। । ३०महामोहनीय स्थान, मंडितपुत्र स्थविर ३० वर्ष की दीक्षा पर्याय पाल कर सिद्ध हुए, ३०मुहूर्य का एक अहोरात्र होता है. ३० मुहत्तों के ३० नाम, अरनाथ भगवान की अवगाहना ३०
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