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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग
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की कुलकोटियों के साढ़े चारह लाख उत्पत्तिस्थान है, चारहवें प्राणायु नाम के पूर्व में तेरह वस्तु (अध्याय) हैं, गर्भज तिर्यच पंचेन्द्रियों के १३ योग हैं, सूर्य के विमान का घेरा एक योजन का हवाँ भ ग है । १३ पल्योपम तथा १३ सागरोपम की स्थिति वाले देव तथा नारकी जीव। ___ १४ भूतग्राम, १४ पूर्व, दूसरे पूर्व में १४ वस्तु हैं, भगवान् महावीर के पास उत्कृष्ट १४ हजार साधु थे, १४ गुणठाणे, भरत और ऐरावत की जीवा १४४०१ योजन है, चक्रवर्ती के १४ रन, लवण समुद्र में गिरने वाली १४ महानदियाँ, १४ पन्योपम और १४ सागरोपम की स्थिति वाले देव तथा नारकी जीव ।
१५ परमाधामी, नमिनाथ भगवान की अवगाहना १५ धनुष, धू वराह कृष्णपक्ष में एकम से लेकर प्रतिदिन चन्द्र का १५ वाँ भाग ढकता जाता है, शुक्रपक्ष में १५ वॉ माग प्रतिदिन छोड़ता जाता है, छ: नक्षत्रों का चन्द्र के साथ १५ मुहूर्त योग होता है, चैत्र
और आश्विन मास में १५ मुहूर्त का दिन होता है, चैत्र में १५ मुहूर्त की रात्रि होती है, विद्यानुप्रवाद'नामक पूर्व में १५ वस्तु हैं, मनुष्यों में १५ योग, १५ पल्योपम तथा १५ सागरोपम की स्थिति वाले देव और नारकी जीव ।
सूयगडांग सूत्र प्रथम श्रु तस्कन्ध के १६अध्ययन, १६ कषाय, मेरु पर्वत के १६ नाम, पार्श्वनाथ भगवान् के उत्कृष्ट १६ हजार साधु थे, सातवें आत्मप्रवाद नामक पूर्व में १६ वस्तु हैं, चमरेन्द्र
और चलीन्द्र के विमानों का विस्तार १६ हजार योजन है, लवण समुद्र की उत्सेध परिवद्धि १६ हजार योजन है, १६ पन्योपम तथा
१६ सागरोपम की आयु वाले देव तथा नारकी जीव ।। * १७प्रकार का असंयम, १७ प्रकार का संयम, मानुषोत्तर पर्वत
की ऊँचाई १७२१ योजन है, सभी वेलंधर और अनुबेलंधर नाग