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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
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मन्दर पर्वत का विष्कम्भ, १० धनुष की अवगाहना वाले शलाका पुरुष, १० नक्षत्र ज्ञान की वृद्धि करने वाले, १० कल्पवृच, १० पन्योपप तथा १० सागरोपम की स्थिति वाले देव और नारकी जीव ।
श्रावक की ११ पडिमाए, लोक के अन्तिम भाग से ज्योतिषी चक्र ११११ योजन है । मेरुपर्वत से ११२१ योजन की दूरी पर ज्योतिचक्र घूमता रहता है, भगवान महावीर के ११ गणधर, भूज्ञा नक्षत्र ११ तारों वाला होता है, नीचे वाले ग्रैवेयक देवों में १११ विमान होते हैं, मेरुपर्वत का विष्कम्भ ऊपर ऊपर अंगुल के ग्यारहवें भाग कम होता जाता है अर्थात् एक अंगुल की ऊंचाई पर चंगुल का ग्यारहवाँ भाग मोटाई कम हो जाती है, ११ अंगुल के बाद एक अंगुल, ११ योजन के बाद एक योजन इसी परिमाण से विष्कम्भ (मोटाई) घटती जाती है, ग्यारह पल्योपम तथा सागरो'पम की स्थिति वाले देव और नारकी जीव ।
१२ भिक्खुपडिमा १२ सम्भोग, १२ कीर्तिकर्म ( वन्दना ), विजया नामक राजधानी की लम्बाई चौड़ाई १२ हजार योजन है, राम बलदेव की आयु १२ हजार वर्ष, मन्दराचल पर्वत की चूलिका मूल में १२ हजार योजन है, जम्बूद्वीप की वेदिका मूल में १२ योजन विस्तार वाली है, सब से छोटी रात और छोटा दिन १२ मुहुर्त के होते हैं, सर्वार्थसिद्ध नामक महाविमान के ऊपर वाले विमानों से ईषत्प्राग्भारा नाम की पृथ्वी १२ योजन ऊपर है । ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के १२ नाम, १२ पल्योपम तथा १२ सागरोपम की स्थिति वाले देव और नारकी जीव ।
१३ क्रियास्थान, सौधर्म और ईशान कल्प देवलोक में १३ पाथड़े हैं, सौधर्म देवलोक में सौधर्मावतंसक नामक विमान साढ़े बारह लाख योजन विस्तार वाला है, ईशान देवलोक का ईशाना' वतंसक भी इतने ही विस्तार वाला है, जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों