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श्री जैन सिदान्त बोला संग्रह, चौथा भाग ११५ ४ कषाय, ४ च्यान, ४ विकथा, ४ संज्ञा, ४ बन्ध, ४ कोस का एक योजन, ४ तारों वाले नक्षत्र, ४ पन्योपम तथा ४ सागरोपप की स्थिति वाले देव और नारक। ,
५क्रियाएं, ५ महाव्रत, ५ कामगुण, ५ श्राश्रवद्वार, ५ संवरदार ५ निर्जरास्थान, ५ समिति, ५ अस्तिकाय, ५ तारों वाले नक्षत्र, ५ पन्योपम तथा ५ सागरोपम की आयु वाले देव और नारकी जीव।
६ लेश्या, ६ जीवनिकाय, ६ बाह्य तप, ६ आभ्यन्तर तप, ६ समुद्घात, ६ अर्थावग्रह, ६ तारों वाले नक्षत्र, ६ पल्योपम तथा ६ सागरोपम की आयु वाले देव और नारकी जीव।
७ भयस्थान, ७ समुद्घात, भगवान् महावीर की ऊँचाई ७ रति प्रमाण, ७ वर्षधर पर्वत, ७ तारों वाले नक्षत्र, ७ पन्योपम तथा ७ सागरोपम की स्थिति वाले देव और नारकी जीव |
८ मदस्थान, प्रवचनमाता, ८ योजन की ऊँचाई वाले पदार्थ, केबली समुद्घात के ८ समयों का क्रम, भगवान् पार्श्वनाथ के ८ गण और ८ गणधर, नक्षत्रों से चन्द्र का योग होता है, ८ पल्योपम तथा ८ सागरोपम की स्थिति वाले देव और नारकी जीव ।
ब्रह्मचर्य गुप्ति, ब्रह्मचर्य अगुप्ति, ६ ब्रह्मचर्य, पार्श्वनाथ भगवान् की अवगाहना हरनि प्रमाण, अभिजित् नक्षत्र का कुछ अधिक है मुहूर्त तक चन्द्र के साथ योग होता है, अभिजित् आदि नौ नक्षत्रों का उत्तर में चन्द्र के साथ योग होता है, रखममा पृथ्वी से सौ योजन की ऊँचाई में तारामण्डल है, जम्बूद्वीप में ह योजन के मत्स्य (मच्छ) हैं, जम्बूद्वीप के विजय नामक द्वार की प्रत्येक दिशा में नौ नौ मझले महल हैं, सुधर्मा सभा की ऊंचाई ह योजन है। दर्शनावरणीय कर्म की प्रकृतियाँ, पल्योपम तथा ६ सागरोपम की स्थिति वाले देव और नारकी जीव। '
१० श्रमणधर्म, १० चित्तसमाधि स्थान, १० हजार योजन