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श्री सेठिया जैन अन्यमाला की दस लाख कुलकोटि । उरपरिसर्प की दस लाख कुलकोटि । दस प्रकार के पुद्गलों का करवन्धी दस प्रादेशिक स्कन्ध।
(४) समवायांग सूत्र तीसरे अङ्ग के पश्चात् चौथा अङ्ग समवायांग सूत्र है। इसमें जीव, अजीव और जीवाजीव का निरूपण तथा अपना सिद्धान्त परसिद्धान्त तथा स्वपरसिद्धान्त का कथन है। इसमें एक से लेकर एक सौ उनसठ तक मेद वाले बोल एक एक भेद की वृद्धि करते हुए क्रमशः बताए हैं। इसमें एक अध्ययन, एक भुतस्कन्ध, एक उद्देश तथा एक ही समुद्देश है। समवायांग सूत्र में एक लाख चवालीस हजार पद हैं।
नोट-पदों की यह संख्या नन्दीमत्र के अनुसार है। पूरे समवायांग स्त्र में इतने पद थे। आज कल जितना उपलब्ध है, उस में पदों की संख्या इतनी नहीं है। समवायांग सूत्र में नीचे लिखे विषय हैं१ आत्मा,१ अनात्मा,१ दण्ड, १ अदण्ड, १ क्रिया, १ प्रक्रिया १ लोक, १ अलोक, १ धर्म,१अधर्म, १ पुण्य, १ पाप, १बन्ध, १ पोच, १ अाश्रव, १ संवर, १ वेदना और १ निर्जरा ।
जम्बूद्वीप, अप्रतिष्ठान नरक, पालक विमान और सर्वार्थसिद्ध की लम्बाई चौड़ाई एक लाख योजन है। पार्दा, चित्रा और स्वाति 'नक्षत्र एक तारे वाले हैं। एक पल्योपम तथा एक सागरोपम की स्थिति वाले देव, मनुष्य, निर्यश्च तथा नारकी जीव ।
२ दण्ड, २ राशि, २ बन्धन, २ तारों वाले नक्षत्र,२ पन्योपम तथा २ सागरोपम की आयु वाले जीव ।
३ दण्ड, ३ गुप्तियाँ, ३ शल्य,३ गारच, ३ विराधना, ३ तारों वाले नक्षत्र, ३ पल्योपम तथा ३ सागरोपम की आयु वाले जीव।